श्रंगार-विलास >> वयस्क किस्से वयस्क किस्सेमस्तराम मस्त
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मस्तराम के मस्त कर देने वाले किस्से
रोहित और वीरेन्दर दोनों ने बात टालने के लिए सिर हिलाया और बोले, "कुछ खास
नहीं, हम दोनों की एक शर्त लगी थी, बस वही।" राजू को अब थोड़ा गुस्सा आने लगा
था, "अबे सालों! ठीक से बताने में क्या नानी मरती है?" वीरेन्दर ने रोहित का
पक्ष लिया, "अबे कुछ खास नहीं, ऐसे ही वो हम लोग एक टीवी शो की बात कर रहे थे,
तू अपनी बता, अब किस लेवल तक पहुँचा।" वे दोनों जानते थे कि राजू को वीडियो गेम
के अलावा कुछ नहीं भाता। खासकर टीवी सीरियल, तो कम ही पसंद आते हैं।
राजू समझ गया कि वो दोनों उसके साथ हरामीपन्ती कर रहे थे। लेकिन हमेशा की तरह
वीडियो गेम की बात आते ही उसका सारा ध्यान उसी पर अटक जाता था। वह चटकारे
ले-लेकर अपने वीडियो गेम में मिली कामयाबी के बारे में बताने लगा। वहाँ शाम के
धुँधलके में खडे़ हुए वे तीनों बहुत देर तक इसी प्रकार की बातें करते रहे। शाम
को घर पर खाने के लिए जाते समय लिफ्ट में अपनी मंजिल तक जाते समय राजू के मन
में एक बार फिर रोहित और वीरेन्दर की बात याद आई, और उसने सोचा, कल निपटूँगा इन
दोनों से। आजकल दोनों बहुत सीक्रेट और इशारों में कुछ खिचड़ी पकाया करते हैं।
उसे कुछ-कुछ भनक थी कि चक्कर कुछ लड़कियों का है, पर ये दोनों भी शातिर थे।
उसने अपने आप से कहा, "कोई नहीं कल निकालता हूँ, इनके सीक्रेट!"
रात में खाने के बाद वह कुछ देर तक अंग्रेजी की एक गेम शो देखता रहा। गरमियाँ
इतनी अधिक थीं, कि देर रात को भी कमरे ठंडे नहीं होते थे। इसलिए वह फ्लैट की
बालकनी में अपना बिस्तर लगाकर सोता था। सोने से पहले बालकनी में खड़े होकर
देखते समय अचानक सामने की बिल्डिंग में अपने से नीचे की एक मंजिल के एक फ्लैट
में एक आंटी सिर में तौलिया लपेटे हुए एक कमरे से दूसरे कमरे में जाती दिखाई
दीं। उन्हें देखकर उसे ग्यारह मंजिल वाली आंटी की याद आ गई। उनकी पीठ पर
घमौरियों पर पाउडर लगाते समय दर्पण में एक झलक में क्या मस्त दर्शन हुए थे। अगर
थोड़ी देर और देखने को मिल जाता तो कितना मजा आता! जिस चीज पर उसका ध्यान तब
नहीं गया, अब अचानक उसकी याद आई। आंटी की पीठ कैसी साफ-सफेद थी। एक-एक घमौरी
गिनी जा सकती थी।
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