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श्रंगार-विलास >> वयस्क किस्से

वयस्क किस्से

मस्तराम मस्त

प्रकाशक : श्रंगार पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 1990
पृष्ठ :132
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 774
आईएसबीएन :

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मस्तराम के मस्त कर देने वाले किस्से

अब हाल यह था कि उसका दायाँ हाथ अपने बायें उरोज के साथ भिड़ा हुआ था और बायाँ हाथ उसके चरम आनन्द स्थल पर तेज चाल से आवा-जाही करने में लगा था। अचानक उसने एक बायां हाथ रोक दिया और अपनी उंगलियों को आँखों के पास लायी। उसकी उंगलियों में चिकनाई साफ देखी जा सकती थी। अब हवाई पट्टी तैयार थी और हवाई जहाज कभी भी उतर सकता था। वह अपने हाथ की गति पुनः आरंभ करने वाली थी कि अचानक बाहर डोर बेल बज उठी। उसके चेहरे पर उलझन, झल्लाहट और गुस्से के भाव एक-करके प्रगट हो गये। बाहर से किसी महिला की आवाज आ रही थी। इतनी अधिक उत्तेजना के बीच उसने समझने की कोशिश की वह आवाज किसकी थी। कुछ सेकण्ड में वह समझ गई कि अब उसे रुकना होगा। बाहर कोई भी पड़ोसन हो, उसे अपने चेहरे को व्यस्थित करना होगा। वह जानती थी कि इन सब मामलों मे महिलाओँ की बुद्धि कैसे काम करती थी। आखिर वह भी तो एक महिला ही थी।

राजू शाम के समय अपने अपार्टमेंट काम्पलेक्स के अहाते में बने बैडमिंटन कोर्ट पर अपने साथी वीरेन्दर के साथ खेल रहा था। आज वीरेन्दर उसे बार-बार हरा रहा था। राजू जितना भी अपने आपको संभालता, बार-बार उसका ध्यान भटक जा रहा था। तीन गेम हारने के बाद राजू ने खेलने से इंकार कर दिया। वीरेन्दर और राजू सिक्योरिटी गेट से बाहर निकलकर आपस में गप्पें मारने लगे। अभी उन्हें बातें करते मुश्किल से 2-3 मिनट हुए होंगे कि उनका एक और मित्र रोहित अपनी स्कूटी लेकर वहाँ आ पहुंचा। रोहित आते ही वीरेन्दर से बोला, "आज सही टाइम पर निकला मैं!" वीरेन्दर उसे एक मिनट देखा फिर रोहित की पीठ पर शाबाशी की धौल जमा दी। राजू ने सहज उत्सुकता से रोहित से पूछा, "किस काम के लिए?" वीरेन्दर ने राजू की बात काटते हुए कहा, "कहाँ?" रोहित बोला, "तेरा अंदाजा सही निकला, बिलकुल वहीं दीदार हुआ।" राजू ने इस बार वीरेन्दर और रोहित दोनों से एक साथ पूछा, "क्या बात कर रहे हो तुम दोनों?"

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