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श्रंगार-विलास >> वयस्क किस्से

वयस्क किस्से

मस्तराम मस्त

प्रकाशक : श्रंगार पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 1990
पृष्ठ :132
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 774
आईएसबीएन :

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मस्तराम के मस्त कर देने वाले किस्से

विमल के नग्न शरीर पर दृष्टि पड़ते ही उसका चेहरे पर रक्त संचार की लालिमा छा गई। पिछले तीन दिनों में यहाँ की कड़ाके की सर्दियों में उन्होंने अधिकाँश शा्रीरिक संपर्क रजाई के भीतर और बादलों के कारण हल्के उजाले में किया था। इस तरह तेज प्रकाश में उसने विमल के पूरे शरीर को पहली बार देखा था। भारत में कभी-कभी गंदे भिखारियों को अर्धनग्न अवस्था में देखने के अतिरिक्त इस तरह एक वयस्क पुरुष के नग्न शरीर को इस तरह इतने निकट से कभी नहीं देखा था। लड़कियों को वैसे भी यही शिक्षा दी जाती है कि ऐसी परिस्थितियों से बचो, इसलिए उसे विमल को इस तरह देखकर झिझक और लाज दोनों हो रहीं थी। दूसरी तरफ उसका मन यह भी कह रहा था कि अब वह इस तरह एक नग्न पुरुष, और वह भी अपने पति को इस तरह बेधड़क देख सकती है। लेकिन विमल की अनुपस्थिति में उनके बीच हर तरह की संभावनाएँ अपने मन में सोचना अलग बात थी और इस तरह आमने-सामने देखना एकदम अलग बात।

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