लोगों की राय

श्रंगार-विलास >> वयस्क किस्से

वयस्क किस्से

मस्तराम मस्त

प्रकाशक : श्रंगार पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 1990
पृष्ठ :132
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 774
आईएसबीएन :

Like this Hindi book 0

मस्तराम के मस्त कर देने वाले किस्से

अपनी झिझक को छुपाती हुई वह अपने विचारों में खोई हुई थी कि अचानक विमल का स्वर उसके कानों में पड़ा। "दिन भर के थके आदमी को क्या अच्छा स्नान करवा सकती हो?" उसकी आँखों में शरारत थी, लेकिन आवाज मनुहार वाली थी। वह बोली, "स्नान तो बच्चों को करवाया जाता है, बड़े तो खुद ही स्नान कर लेते हैं।" विमल बोला, "बच्चों वाले स्नान और बड़ों के स्नान का मेनू अलग-अलग होता है।" वह अभी भी असमंजस में अपना हाथ विमल के हाथ में दिये हुए खड़ी थी। विमल ने उसके हाथ को हल्का सा झटका दिया तो वह बोली, "बताइये क्या करूँ?"

विमल ने कहा, "इसके लिए सबसे पहले तो तुम्हें कपड़े उतारने होंगे। लेकिन चिंता मत करो, वह मैं तुम्हारे लिए कर दूँगा।" माधवी के गाल उत्तेजना के कारण तपने लगे। वह हतप्रभ खड़ी रह गई। विमल ने आगे झुककर उसका कु्र्ता दोनों कूल्हों से उठाकर उसके दोनों हाथों को कंधे से ऊपर ले जाते हुए एक झटके में उतार दिया। ब्रा के अंदर माधवी की सशक्त और रक्त प्रवाह के कारण सख्त हुई छातियाँ बाहर निकलने की चेष्टा करने लगीं। माधवी समर्पण का आनन्द लेने लगी। विमल ने थोड़ी देर की कोशिश के बाद उसकी ब्रा के हुक खोल दिए।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book