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उस पार

रश्मि गौड़

प्रकाशक : विद्या विहार प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :159
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7932
आईएसबीएन :9789380186221

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आज की भागमभाग की जिंदगी में तथा अंग्रेजी के जबरदस्त माहौल में सरलतम हिंदी में लिखी कहानियाँ।

Us Par - A Hindi Book - by Rashmi Gaur

‘‘नाम जानकर क्या करेंगी, मैं बताए देती हूँ, ये शादी नहीं हो सकती।’’ वह बोली और उसने फोन पटक दिया। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि हो क्या रहा है! दिल घबराने लगा, मन आशंकित हो गया। क्या होगा मेरा? अगर विपिनजी ने भी धोखा दे दिया तो! हे भगवान्, क्या करूँ मैं अब? मेरी बिटिया सुहानी इस दुनिया की झंझटों से अनजान बेखबर सोई हुई थी। मैंने विपिनजी को भी फोन नहीं किया, सोचेंगे की मैं शक कर रही हूँ। सारी रात यूँ ही बेचैन गुजरी। सुबह पापा को सब बताया तो वे बोले, ‘‘बेटा, विपिनजी केंद्रीय स्तर के मंत्री हैं, उनके हजारों मित्र हैं तो कई दुश्मन भी होंगे। वही ये चालें चल रहे हैं। राजनीति के दाँव-पेंच तुम नहीं जानती, कुछ विरोधी पार्टीवाले ये ही चाहते हैं कि विपिनजी किसी-न-किसी चक्कर में फँसे रहें, बदनाम हो जाएँ। ये चालें हैं, इन्हें समझो, अब तुम भी इस दलदल में पाँव रख रही हो, बहुत सँभलकर होशियारी से चलना होगा, पग-पग पर बाधाएँ आएँगी।’’

–इसी संग्रह से

स्त्री के मर्म और संवेदना की परत-दर-परत खोलतीं, नारी के संत्रास-दंश को दूर कर एक सकारात्मक चेतना जगाने की सशक्त अभिव्यक्ति हैं ये कहानियाँ। आज की भागमभाग की जिंदगी में तथा अंग्रेजी के जबरदस्त माहौल में सरलतम हिंदी में लिखी ये कहानियाँ पाठक को अपने से, किसी के दर्द से, किसी की यातना से मुलाकात का अवसर देंगी।

का करूँ सजनी


‘‘अरे दिशा डियर! जरा आँखें तो खोलो। देखो, अपनी बगिया के हरसिंगार के फूल तुम्हारा इतनी बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं कि तुम अपनी नाजुक हथेलियों में उन्हें भर लो।’’ शिबेन ने हँसकर हरसिंगार के कुछ फूल दिशा के चेहरे से छुआए। हलकी ठंड चुपके-चुपके से वातावरण में घुल रही थी। ईश्वर की लीला भी अपरंपार है। हर मौसम के लिए खुशबूदार फूल एवं तरह-तरह के फल दिए हैं। सचमुच, कभी-कभी दिशा इस अप्रतिम सौंदर्य से अभिभूत हो उठती। ठंडे फूल गालों से लगते ही उसने हँसकर आँखें खोलीं। रात को टी.वी. पर देर तक पिक्चर देखी थी, सो नींद ही नहीं खुली। बोली, ‘‘अच्छा जी! आज आप पहले उठ गए, हरसिंगार के तो सारे फूल झड़ गए होंगे।’’

‘‘अजी, मैं झड़ने देता उन्हें? देखो, तुम्हारे लिए इकट्ठे कर लिये हैं।’’ कहकर बाँस की सुंदर-सी टोकरी के फूल शिबेन ने दिशा के सामने रख दिए। दिशा का मन एक अनजानी-सी खुशी से सराबोर हो गया। थी तो छोटी सी बात, पर शिबेन कितना ध्यान रखते हैं! दोनों बच्चे सोए हुए थे। छुट्टी का दिन था। पड़ोस में कहीं ‘गायत्री मंत्र’ का कैसेट चल रहा था। मानो हरसिंगार की महक ने उसमें नया जीवन भर दिया हो। दिशा फुरती से उठी और चाय का पानी रखकर हाथ-मुँह धोए। फ्रेश होकर दोनों मियाँ-बीबी लॉन में चाय की चुस्कियाँ लेते हुए अखबार पढ़ने लगे। हलकी-हलकी धूप खिल चुकी थी, ठंडी बयार में भीनी-भीनी खुशबू थी।

दिशा का खुशबू से प्रेम बहुत पुराना है। बचपन से ही वह इसकी दीवानी थी। जहाँ कहीं भी खुशबूदार क्रीम मिल गई अथवा फूलों की खुशबूवाला इत्र, वह खरीद लेती। परंतु स्कूल में कोई भी इत्र आदि लगाना वर्जित था, सो घर आते ही स्कूल की यूनिफॉर्म उतारकर फौरन घर के कपड़ों में आ जाती और अच्छा सा इत्र लगाकर ही खाने पर बैठती। शुरू-शुरू में मम्मी ने विरोध किया–बेटी, ये पढ़ने-लिखने के दिन हैं, अच्छा नहीं लगता, परंतु पापा थे कि जहाँ कहीं भी अच्छा सेंट देखते, अपनी बिटिया के लिए ले आते। इन्हीं फूलों की खुशबू से आकाश उसकी ओर आकर्षित हुआ था। कॉलेज जाते हुए रोज बस स्टॉप पर आकाश उसके आस-पास ही खड़ा होता। दिशा को अंदेशा हुआ कि कहीं पीछा तो नहीं कर रहा, परंतु वह कभी कुछ न कहता। चुपचाप बस में बैठकर कॉलेज पर उतर जाता। दोनों एक ही कॉलेज में थे–वह शायद बी.एससी. में था और दिशा फर्स्ट ईयर की छात्रा थी। एक दिन अनायास दोनों को एक ही सीट पर बैठना पड़ा। बात आकाश ने ही छेड़ी, ‘आपका इत्र बहुत ही भीना है, बड़ा तरोताजा कर देता है।’ दिशा ने धन्यवाद दिया तो बोला, ‘अरे! धन्यवाद तो मुझे देना चाहिए आपको कि इतनी खुशबू फैलाती हैं आप।’ एकबारगी तो दिशा को लगा कि कहीं व्यंग्य तो नहीं कर रहा, परंतु फिर वह तपाक से बोला, ‘पता है, इस खुशबू से खिंचा मैं रोज आपकी ही बस में जाता हूँ।’ दिशा हँस पड़ी, ‘तो जनाब, पीछा करना इसे ही तो कहते हैं।’

‘अरे, मुझे पता नहीं था, अच्छा हुआ आपने बता दिया,’ कहकर आकाश भी हँसा।
इस तरह से दोनों की दोस्ती हो गई।
दिशा ने महसूस किया कि आकाश भी उसकी ही तरह शौकीन है। अब तो बर्थ डे, वैलंटाइन डे, सब मौकों पर खूब भेंटों का आदान-प्रदान होने लगा।

आकाश का अंतिम वर्ष था और दिशा इंटर पास कर चुकी थी। आकाश ने बताया कि वह एम.एस. (गणित) में दाखिला लेगा और साथ ही जी. आर. ई. की परीक्षा देगा, ताकि उसे बाहर जाने का मौका मिले। दिशा कुछ परेशान अवश्य हुई, परंतु वह अभी बहुत छोटी थी। उसने दबी जबान में कहा भी कि ‘भारत में भी बहुत तरक्की के मौके मिलेंगे, बाहर जाना क्या जरूरी है?’

‘अरे, तुम देखना, वहाँ पर एम.एस. करते ही खूब बढ़िया नौकरी मिल जाएगी। स्काई विल बी द लिमिट।’ आकाश ने उत्साह के साथ कहा। दिशा आकाश से अभी इतनी अंतरंग नहीं हुई थी, प्रतिवाद भी किस हक से करती! दोनों में बस दोस्ती ही तो थी। आज तक कभी आकाश ने उससे अपने प्रेम का इजहार नहीं किया था। ‘अच्छा, तो बताओ, इतना पैसा कमाकर क्या करोगे?’ फिर भी दिशा ने पूछ ही लिया। ‘अरे, तुम पागल हो क्या, किस जमाने में रहती हो? देखती नहीं, बाजार में क्या-क्या नई-नई चीज़ें आ रही हैं, करोड़ों रुपए भी कम पड़े जाएँगे।’ आकाश बोला।

‘तो उन करोड़ों की चीजें पाकर तुम धन्य हो जाओगे’, दिशा थोड़ी उत्तेजित हो गई।
‘और नहीं तो क्या, उम्र भर चक्की पीसना, चार पैसों के लिए तरसते रहना ही जिंदगी है?’ आकाश भी तर्क करने के मूड में आ गया।
‘यानी कि भारत में सब उम्र भर चक्की पीसते हैं। सारे अपने प्रियजनों को छोड़कर, रिश्तेदारों को छोड़कर आप विदेश जाएँगे, ताकि आप अमेरिका में नई-नई चीजें खरीद सकें?’ दिशा हँसी।

‘देखिए मैडम, हम इक्कीसवीं सदी में रह रहे हैं। अगर प्रगति करनी है तो पंख पसारने होंगे, उड़ना होगा, केवल रेंगने से काम नहीं चलेगा।’ आकाश लगता था अभी उड़ जाएगा।
‘ठीक है, आप उड़िए, हम रेंगते ही भले’, कहकर दिशा ने हथियार डाल दिए।
दिशा का मन था कि आकाश उससे कहे कि तुम क्यों रेंगोगी, मेरे साथ तुम भी उड़ना, परंतु आकाश ने ऐसा कुछ नहीं कहा।

दिशा ने जब तक ग्रेजुएशन किया, आकाश को दिल्ली में बहुत अच्छी नौकरी मिल गई थी। अपने पिता की गाड़ी में वह रोज ऑफिस जाता-आता और GRE की तैयारी भी कर रहा था साथ-साथ। GRE में बहुत अच्छे नंबर आए और सिलिकॉन वैली की यूनिवर्सिटी में उसका चयन हो गया। जाने की काफी तैयारियों–जैसे वीजा, लोन आदि में आकाश लग गया। बस स्टॉप पर अब मिलना ही नहीं होता। आकाश का तो पता नहीं, पर दिशा का मन बहुत व्याकुल था। छुट्टियों के बाद एम.ए. (अंग्रेजी) में दाखिले के लिए कॉलेज जा रही थी। कॉलेज से फार्म वगैरह लेकर बाहर निकल ही रही थी कि आकाश की आवाज सुनाई दी–

‘ए खुशबुओं की रानी, कहाँ भागी जा रही हो?’
‘अरे आप? यहाँ कैसे?’ दिशा की खुशी का ठिकाना न था।
‘प्रिंसिपल साहब से कुछ पेपर्स साइन कराने थे। बस सब तैयारी है, आई एम रेडी टू फ्लाई, चलो कॉफी पीते हैं’, कहकर आकाश बाहर की ओर चला।

‘पर कैंटीन तो उधर है’, दिशा बोली।
‘अरे, इस रद्दी कैंटीन में क्या कॉफी पिएँ! चलो, बैरिस्टा चलें।’ आकाश बाहर निकल आया। दिशा क्षुब्द हो गई, परंतु फिर भी वह अनमनी-सी आकाश के साथ चल दी।

‘तो आप चले जाओगे सात समंदर पार?’ कॉफी पीते हुए दिशा ने पूछा।
‘सात समंदर पार तो पुराने जमाने की बात है। अब तो 19 घंटे की डायरेक्ट फ्लाइट है’ आकाश मगन होकर बोला।
‘तो all set खुश हो बहुत’, दिशा उदास-सी थी।
‘Of course बहुत खुश! बस 15 दिन बाद जाकर अपने अंकल के यहां कुछ दिन रहूँगा, फिर यूनिवर्सिटी चला जाऊँगा।’ आकाश बहुत प्रसन्न था।

आकाश कभी इतना नहीं बोलता था, पर मानो आज उसे सारा जहान मिल गया था। दिशा मूक सुनती रही। कॉफी खत्म होने पर उठ खड़ी हुई–‘अच्छा, मैं चलूँ, बहुत-बहुत बधाई, ईश्वर करे तुम खुश रहो, जहाँ भी रहो।’
‘ओह, रीयली थैंक्स, सेम टू यू’, कहकर आकाश ने भी विदा ली।
दिशा के अंदर कुछ टूट गया, मन कच्चा-सा होने लगा। वह अपनी कमजोरी जताना नहीं चाहती थी, इसलिए तेजी से चल दी। एक बार भी यह नहीं कहा कि उसे मेरी बहुत याद आएगी या फिर जब लौटेगा तो मिलना होगा।

अचानक दिशा की तंद्रा टूटी, शिबेन उसे कोई आर्टिकल पढ़कर सुनाने लगे। उसमें यही था कि जिस हिसाब से आज की पीढ़ी बाहर जाकर बस रही है, भारत में बीस वर्षों बाद संभ्रांत परिवार में केवल बूढ़ों की संख्या ज्यादा होगी, जवान बहुत कम दिखाई देंगे।
‘‘सच, यह बड़ी गंभीर समस्या है।’’ दिशा बोली।

‘‘पर हमारे पास नई पीढ़ी को देने के लिए क्या है–आतंकवाद, घूसखोरी, गुंडागर्दी, चारों ओर उत्पात। क्या हम अपने को सुरक्षित समझते हैं? सारे दिन बिजली-पानी से जूझना पड़ता है आम आदमी को।’’ शिबेन ने बचाव किया नई पीढ़ी का।
‘‘परंतु शिबेन, बाहर जाकर बसनेवालों में आम आदमी की संतान नहीं हैं। ये वे आभिजात्य वर्ग हैं, जिसमें बच्चे सारी सुख-सुविधाओं में पले हैं। मुझे तो लगता है वो संघर्ष से डरते हैं। अरे भई, अपने घर में अगर अमन-चैन नहीं, तो क्या पड़ोस के घर में जाकर रहने लगेंगे?’’ आज भी दिशा को बाहर जाना पलायन ही लगता।

इतने में बच्चे भी जागकर आए और राजू मम्मी की और सोनी पापा की गोद में दुबकने लगे। फिर एक-दूसरे को छोड़कर भाग-दौड़ करने लगे। दिशा और शिबेन उठकर तैयार होने के लिए चल दिए। अब रामजी आ गया था, और दोनों बच्चों को पकड़-धकड़कर दूध देना, मुँह आदि धुलवाना उसकी जिम्मेदारी थी। वैसे भी बच्चे अब समझदार हो चले थे। राजू पाँचवें में और सोनी तीसरे में थी।

आज तय हुआ कि बच्चों को ‘ताजमहल’ दिखाया जाए। आगरा में शिबेन की नियुक्ति अभी चंद महीने पहले ही हुई थी। अधिशासी अभियंता थे, अतः सुंदर कोठी, नौकर-चाकर सब आराम थे। इस तरह से दिशा व शिबेन ने काफी जगहों का आनंद उठाया था। हर जगह की कोई-न-कोई विशेषता, मसलन, लखनऊ की चिकनकारी, मुरादाबाद में पीतल का काम, फर्रूखाबाद में सिल्क प्रिंटिंग, मथुरा के पेड़े, मेरठ की रेवड़ी-गजक, कहाँ तक गिनाएँ! जिंदगी नित नए अनुभवों के साथ तेजी से भाग रही थी। दिशा का शरीर समय के साथ थोड़ा भर गया था, जिससे उसका सौंदर्य और भी निखर आया था। घर में पति व बच्चों के सुख में सराबोर थी। ईश्वर से यही कामना करती कि सब सुख-सौभाग्य यूँ ही बना रहे।

चूँकि ताजमहल देखने जाना था, इसलिए बच्चे जल्दी-जल्दी तैयार हो गए। खीने-पीने का सामान भरकर ताजमहल पहुँचे। वहाँ पर विदेशी सैलानियों की बड़ी भारी भीड़ थी। देशी NRI और विदेशी गोरे रंग-बिरंगे कपड़ों में कीमती कैमरे लटकाकर घूम रहे थे। कोई एक-दूसरे से लिपटकर प्यार का इजहार कर रहे थे। शिबेन ने चूँकि कहलवा दिया था कि वे परिवार सहित ताजमहल देखने आएँगे, सो अवर अभियंता व जूनियर अभियंता अगवानी के लिए खड़े थे। वे इमारत देखने के लिए अंदर घुसे ही थे कि ‘‘दिशा, एक्स्यूज मीं प्लीज’’ सुनकर ठिठक गई।

‘‘क्या आप दिशा हैं?’’ आवाज बहुत जानी-पहचानी थी। ‘‘जी हाँ’’, कहकर दिशा मुड़ी तो देखा आकाश उसके सामने खड़ा था। अगर आकाश उसे न टोकता तो शायद नोटिस भी न करती। इन 14-15 सालों में आकाश भी काफी तंदुरुस्त लगने लगा था। पहले हलकी मूँछें थीं, जो अब गायब थीं। गोगल्स पहने, गले में महँगा निकान का डिजिटल कैमरा लटकाए, ली की जींस, बढ़िया टी शर्ट पहने काफी स्मार्ट लग रहा था आकाश।

‘‘अरे आप यहाँ कैसे?’’ दिशा चकित होकर बोली।
‘‘भई, ताजमहल देखने आए हैं अपने मित्रों के साथ’’, कहकर आकाश ने माइक, टॉम और कैथी को आवाज लगाई। इधर दिशा ने भी शिबेन व बच्चों को बुलाया।

‘‘आकाश, मेरे पति से मिलो–मि. शिबेन और ये दोनों आस्था और हर्ष। बेटा नमस्ते करो, ये आकाश अंकल हैं।’’ दिशा ने शिबेन को बताया कि आकाश कॉलेज में उसका सीनियर था। बच्चों ने नमस्ते की तो आकाश ने उनके गालों पर हाथ फेरा और मित्रों से परिचय कराया।

‘‘मैं इनको लाया हूँ साथ में और भी तीन लोग हैं। जब से बिल क्लिंटन ने कहा है कि दुनिया में दो तरह के लोग हैं–एक तो वे, जिन्होंने ताजमहल देखा है, दूसरे वे जिन्होंने ताजमहल नहीं देखा है। सो सारे अमेरिकन ताजमहल देखने के लिए लालायित हैं। यू सी, वहाँ पर हीरो वर्शिपिंग भारत से कहीं ज्यादा है।’’ आकाश बोला।
‘‘रियली, सच मैंने भी यही महसूस किया, हम अपने पिछड़ेपन को लेकर रोते हैं, परंतु आपके यहाँ चुनाव प्रचार में जो जोश दीखता है, वह भारत से कहीं ज्यादा है’’ शिबेन से भी नहीं रहा गया।

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