उपन्यास >> निमन्त्रण निमन्त्रणतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का यह उपन्यास निमन्त्रण शीला और उसके सपनों का पुरुष प्रेमी मंसूर की कहानी है।...
सारे गुलाब उसके हाथ में सौंप कर कहूँगी, 'लो, मेरा समूचा तुम्हारे लिये है-'
मंसूर वे तमाम गुलाब अपनी हथेलियों में समेट कर, ज़रूर बेहद खुश होगा। वह समझ जायेगा, यह लड़की बड़े दिलवाली है!
इस वक़्त हॉल में जाऊँ भी, तो कोई मिलेगा नहीं, लेकिन अभी घर जाने का भी मन नहीं हो रहा है! चलो, आर्ट कॉलेज ही
चलते हैं। वहाँ शिमुल, नामक मेरी एक दोस्त है! महिला दोस्त! अच्छा, शिमुल को क्या मंसूर के बारे में बता दूँ?
उससे कहूँगी, 'मुझे अपने प्रिय इन्सान से अगले शनिवार को मिलना है। उस दिन क्या किया जाये? वह दिन कैसे मनाया जाये? इस बारे में, तुझसे सलाह लेने आयी हूँ मैं!'
शिमुल! वह लड़की गाना गाती है, तस्वीरें आँकती है और आवृत्ति भी करती है। रुचियों से भरी-भरी! जबकि अपना आपा मुझे बेहद मेधाहीन, बुद्धू-बक्काल क़िस्म का लगता है। ऐसी मेधा ले कर, मैं मंसूर जैसे विराट क़िस्म के शख्स से मिलूँगी, मुझे जाने कैसा तो डर भी लगा। अगर कहीं वह मुझे नापसन्द कर दे?
अगर वह मुझसे पूछ बैठे! 'अच्छा, बोलो तो, तुम्हें यूरोप कैसा लगता है?'
मुझे कहना ही पड़ेगा, 'वहाँ कभी गयी नहीं।'
मेरी यह बात सुन कर, वह क्या यह नहीं सोचेगा कि इस जाहिल-गँवार लड़की को बुला कर मैंने बहुत बड़ी भूल की है। असल में, शिमुल ही मुझे सलाह दे सकती है कि ऐसा क्या किया जाये कि ऐसा रुचिवान, संस्कृतिवान इन्सान, मुझे पसन्द कर ले।
शिमुल से मिलने के इरादे से, मैं आर्ट कॉलेज की तरफ़ बढ़ती गयी। वह पेंटिंग्स की छात्रा है।
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