उपन्यास >> निमन्त्रण निमन्त्रणतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का यह उपन्यास निमन्त्रण शीला और उसके सपनों का पुरुष प्रेमी मंसूर की कहानी है।...
सज-धज कर, साड़ी लपेट कर, ठीक साढ़े बारह बजे मैं एक स्कूटर पर सवार हो गयी। स्कूटर से मैंने गुलशन, एक नम्बर चलने को कहा। मैं मकान पहचान लूँगी। वह मकान ऐसी गली-घुच्ची में नहीं है।
मैं ठीक-ठीक ठिकाने पर पहुँच गयी। मैंने दरवाजा खटखटाया। पर्स से आईना निकाल कर, मैंने चुपके-से एक बार चेहरे का मुआयना भी कर लिया। बाल-वाल ठीक-ठाक हैं न!
मंसूर ने दरवाज़ा खोल दिया। आज उसने कत्थई रंग की शर्ट, सफ़ेद पैंट पहन रखी थी। आज मैं उसके लिए कोई गिफ़्ट भी नहीं ला पायी। मेरे पास रुपये नहीं थे। सस्ते दाम की कोई चीज़ लाना, ठीक नहीं था।
घर के दो कमरे पार करके, मैं छोटे कमरे में दाखिल हुई। यह हमारे पहले-पहले प्यार का कमरा है। मुझे ऐसा लगा, यह कमरा और मंसूर, मानो बेहद लम्बे अर्से से मेरे नितान्त अपने हैं।
'तुम कब आये?' मैंने पूछा।
'सुबह, दस बजे।
'इतने पहले?'
'कल तुमने इन्तज़ार किया था न, आज मैंने उसका बदला चुका दिया। आज तुम बे-हद खूबसूरत लग रही हो, शीलू!'
मैंने चारों तरफ़ निगाहें दौड़ाते हुए अगला सवाल किया, 'मुफ़ख़्वर भाई कहाँ हैं?'
'घर में ही है। सो रहा है।'
'दिन-दोपहरी सो रहे हैं?'
'दोपहर की नींद ही तो मज़ा देती है।'
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