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निमन्त्रण

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :120
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7958
आईएसबीएन :9789350002353

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तसलीमा नसरीन का यह उपन्यास निमन्त्रण शीला और उसके सपनों का पुरुष प्रेमी मंसूर की कहानी है।...


अच्छा, मैं क्या दुल्हन-दुल्हन-सी लग रही हूँ? शायद, दुल्हन ही लग रही हूँ। जिस दिन हमारी शादी होगी, मंसूर शायद समूचे ढाका शहर को रोशनी से सजा देगा। वह ठहरा प्राणवन्त लड़का! बेहद जोशीला! उसके ढेरों यार दोस्त हैं। जब वह अपना विवाह करेगा, समूची दुनिया में इसका डंका पीट-पीट कर करेगा। पूरी दुनिया में ऐलान करेगा, वह शादी कर रहा है।

मंसूर ने अचानक मुझे क़रीब खींच लिया और पट से चूम लिया। उसके मुँह से तीखी, झाँझ भरी गंध आ रही थी। उसने अपनी बाँहों में इतनी जोर से कस लिया कि उसके दबाव में, मुझे लगा कि मेरी हड्डी-पसली टूट कर चकनाचूर हो जायेगी। काफ़ी देर तक अपने होंटों में मेरे होंट दबा कर, लम्बे चुम्बन के बाद, उसने अपना चेहरा हटाया। मैं भी उसे धकेल कर परे करना चाहती थी। बिना कुछ कहे-सुने, उसका यूँ चुम्बन लेना मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। इसके अलावा, कुल्लमकुल दो-तीन दिन की मुलाक़ात में, यूँ चुम्बन लेते हैं भला? चुम्बन तो छः-सात महीने बाद, जब प्यार खूब गहरा हो जाता है, तब लिया-दिया जाता है। लेकिन मैंने गौर किया, मंसूर को देरी सहन नहीं हो रही है। अभी उसे बरज देना होगा। मैं छिटककर अलग हट गयी।

'यह तुम क्या कर रहे हो, मंसूर? मुझे यह सब बिल्कुल नहीं सुहाता।'

मुझे यह भी एहसास हुआ कि मेरे होंट फूल उठे हैं। बैग से आईना निकाल कर मैंने देखा, मेरे होट, वाकई सूजकर ढोल हो आये हैं। मुझे बेतरह रुलायी छूटने लगी।

'यह सब तुम क्या कर रहे हो, मंसूर?' मैंने रुआंसी आवाज़ में कहा, 'और तुम्हारे मुँह से यह गन्ध कैसी आ रही है?'

'निरी बच्ची हो तुम, यह सब तुम नहीं समझोगी?' इतना कह कर, उसने एक झटके में मेरी साड़ी खींची।

उसने साड़ी इतनी ज़ोर से खींची कि साड़ी को ब्लाउज से टाँकनेवाली सेफ्टीपिन भी खट से खुल गयी। झटके से पूरी साड़ी उतार कर, मंसूर ने मुझे धकेल कर, बिस्तर पर ला पटका। मंसूर के इस बर्ताव से मैं हक्कीबक्की रह गयी।

मैंने तुलसी का पेटीकोट पहना था, तुलसी का ही ब्लाउज़। मैंने दोनों बाँहें अपनी छाती पर आड़े-तिरछे कस लीं। मंसूर ने अपनी शर्ट खोल डाली। मारे दहशत के मैंने आँखें मूंद लीं। उसने दरवाज़ा अन्दर से 'लॉक' कर लिया। वह उछल कर बिस्तर पर आया और मुझ पर टूट पड़ा। डर के मारे मेरी छाती थर-थर काँपती रही। मुझे सूझ नहीं पड़ा कि मैं क्या करूँ। उसने मेरी छाती पर हत्थड मारा। और तेज़-तेज़ हाथों से मेरे ब्लाउज के हुक खोल डाले। मैं उसे रोकती रही, लेकिन मंसूर की ताक़त के सामने, मेरी सारी कोशिशें हार गयीं। मंसूर ने मेरा ब्लाउज़ चीर-फाड़ कर फेंक दिया। मैं चीख़ उठी।

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