उपन्यास >> निमन्त्रण निमन्त्रणतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का यह उपन्यास निमन्त्रण शीला और उसके सपनों का पुरुष प्रेमी मंसूर की कहानी है।...
सड़क पर रिक्शे, साईकिल, मोटर साईकिल, बेबी टैक्सी, गाड़ियों का रेला दौड़ता हुआ। शायद अभी ज़्यादा रात नहीं हुई थी।
मैंने हाथ के इशारे से एक बेबी टैक्सी बुलायी और बुदबुदा कर कहा-'शान्तिनगर चलो।'
मैंने पीछे मुड़ कर देखा। वह मकान अँधेरे में डूबा हुआ था। मकान में कोई मौजूद है या नहीं, समझ में नहीं आया।
आज भाई के साथ, उनके दोस्त, रतन के यहाँ जाना तय हुआ था। भाई और तुलसी, शायद मेरी राह देखने के बाद, अब मेरे बिना ही चले गये होंगे या यह भी हो सकता है कि वे दोनों मुझे खोज रहे हों। माँ नमाज़ पढ़ कर दुआ माँग रही होगी कि कहीं कोई दुर्घटना न हुई हो, मैं जल्द-से-जल्द घर लौट आऊँ। अब्बू शायद चहलकदमी करते हुए, घर-बाहर एक कर रहे होंगे। मुमकिन है, उन्होंने मेरा पता करने के लिए, ख़ाला के यहाँ भी किसी को भेजा हो। शायद नादिरा, बकुल, रोज़ी के यहाँ जा कर भी खोज-खबर ली गयी होगी। इस वक़्त सेतु और सेवा ज़रूर आपस में शरारतभरी छेड़छाड़ कर रही होंगी या फिर पढ़ने बैठ गयी होंगी या फिर ऐसा भी हो सकता है कि तुलसी ने उन दोनों को अपने पास बुला लिया हो और कहानी-क़िस्से सुना रही हो। लेकिन, तुलसी भला गपशप कैसे कर रही होगी? उसे तो भाई के साथ बाहर जाना है।
मैंने अपनी देह का पूरा वजन, बेबी टैक्सी की सीट पर टिका दिया। बेबी टैक्सी वाला मुझे, मेरे घर ले जा रहा है।
घर में क़दम रखते ही, अगर अब्बू मुझसे सवाल करें, 'कहाँ गयी थी?' तो मैं सच-सच बता दूंगी।
आज से मैं कभी झूठ नहीं बोलूँगी।
मैं बता दूंगी- 'आज, मेरा निमन्त्रण था।'...
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