लोगों की राय
कहानी संग्रह >>
अग्निखोर
अग्निखोर
प्रकाशक :
राजकमल प्रकाशन |
प्रकाशित वर्ष : 2023 |
पृष्ठ :127
मुखपृष्ठ :
सजिल्द
|
पुस्तक क्रमांक : 8060
|
आईएसबीएन :9788126714667 |
 |
|
1 पाठकों को प्रिय
289 पाठक हैं
|
"फणीश्वर नाथ रेणु : शब्दों के माध्यम से ग्रामीण भारत की धड़कन को जीवंत करने वाले।"
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
हिन्दी भाषा फणीश्वर नाथ रेणु की ऋणी है उस शब्द सम्पदा के लिए जो उन्होंने स्थानीय बोली-परम्परा से लेकर हिन्दी को दी। नितान्त जमीन की खुशबू से रचे शब्दों को खड़ी बोली के फ्रेम में रखकर उन्होंने ऐसे प्रस्तुत किया कि वे उनके पाठकों की स्मृति में हमेशा-हमेशा के लिए जड़े रह गए।
उनके लेखन का अधिकांश इस अर्थ में बार-बार पठनीय है। दूसरे जिस कारण से रेणु को लौट-लौटकर पढ़ना जरूरी हो जाता है, वह है उनकी संवेदना और उसे शब्दों में चित्रित करने की उनकी कला। वे भारतीय लोकजीवन और जनसाधारण के अस्तित्व से लिए निर्णायक अहमियत रखने वाली भावधाराओं को तकरीबन जादुई ढंग से पकड़ते हैं, और उतनी ही कुशलता से उसे पाठक के सामने प्रस्तुत कर देते हैं।
इस संग्रह में ‘अग्निखोर’ के अलावा ‘मिथुन राशि’, ‘अक्ल और भैंस’, ‘रेखाएँ : वृत्त चक्र’, ‘तब शुभ नामे’, ‘एक अकहानी का सुपात्र’, ‘जैव’, ‘मन का रंग’, ‘लफड़ा’, ‘अग्निसंचारक’ और ‘भित्ति चित्ररी मयूरी’ कहानियाँ शामिल हैं। इन ग्यारह कहानियों में से हर एक कहानी और उसका हर एक पात्र इस बात का प्रमाण है कि उत्तर भारत, विशेषकर गंगा के तटीय इलाकों की ग्राम्य संवेदना और जीवन को समझने के लिए रेणु का ‘होना’ कितनी महत्त्वपूर्ण और जरूरी है।
मैं उपरोक्त पुस्तक खरीदना चाहता हूँ। भुगतान के लिए मुझे बैंक विवरण भेजें। मेरा डाक का पूर्ण पता निम्न है -
A PHP Error was encountered
Severity: Notice
Message: Undefined index: mxx
Filename: partials/footer.php
Line Number: 7
hellothai