अतिरिक्त >> भटियाली भटियालीअमृत राय
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भटियाली पुस्तक का किंडल संस्करण
पता नही कितनी देर तक वह यों ही मन ही मन बड़बड़ाता रहा, पर चित्रा के भूत से मुक्ति न मिली। एक दोस्त की मेज़ के पास खड़े होकर चाय की प्याली मुँह से लगाये-लगाये उसने एक उड़ती हुई नज़र चारों तरफ़ डाली–चित्रा का कहीं पता न था। आख़िर हारकर वह एक मेज़ पर बैठ गया, और उसी दम गोपाल बैनर्जी ने बंगाल के माँझियों के गीत शुरू किये। एक के बाद एक उसने चार भटियाली गीत सुनाये और हवा में गोया पानी लहरें मारने लगा, पाल उड़ने लगे, पानी काटते हुए चप्पू छपछप करने लगे, सूरज क्षितिज पर डूबने लगा, सुधियों का चंदन बिखरने लगा, चाँद नील महासागर में अकेले अपनी नाव खेने लगा, प्यारी के भौंरे जैसे काले केशों से बकुल की गंध आने लगी, आँगन का केले का गाछ हरा हो गया, मन पिघलने लगा, निर्जन कगार अरर अरर ढहने लगे...
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