अतिरिक्त >> बिखरे मोती बिखरे मोतीसुभद्रा कुमारी चौहान
|
2 पाठकों को प्रिय 49 पाठक हैं |
बिखरे मोती पुस्तक का किंडल संस्करण
सन् १९॰४ में जन्मी और भारत के स्वाधीन होने तक अपनी कलम के माध्यम से न केवल महिलाओं की आवाज बनी रहीं, बल्कि अपनी लेखनी से स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को अपना कर्तव्य स्मरण करवाती रहीं। उनकी कविताओं और कहानियों में अधिकांशतः तत्कालीन समाज में महिलाओं और अन्य सामाजिक समस्याओं की ओर ध्यान दिलाया जाता रहा है।
जमींदारी प्रथा के चलते सामान्य जन अंग्रेजों और जमींदारों के दोहरे प्रहार से हमेशा पीड़ित रहते थे। अपनी कविताओं और कहानियों में सुभद्रा जी लगातार उन पर जबाबी हमले करती रहीं।भग्नावशेष
होली
पापी पेट
मझली रानी
परिवर्तन
दृष्टिकोण
कदम्ब के फूल
किस्मत
मछुए की बेटी
एकादशी
आहुति
थाती
अमराई
अनुरोध
ग्रामीणा
जमींदारी प्रथा के चलते सामान्य जन अंग्रेजों और जमींदारों के दोहरे प्रहार से हमेशा पीड़ित रहते थे। अपनी कविताओं और कहानियों में सुभद्रा जी लगातार उन पर जबाबी हमले करती रहीं।
संग्रह की कहानियाँ
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book