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कलकत्ता 85

विमल मित्र

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :197
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 8381
आईएसबीएन :0

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कलकत्ता 85 पुस्तक का किंडल संस्करण

Calcutta 85 - A Hindi EBook By Vimal Mitra



‘घाट बाबू’ के सन्दर्भ में देश के कोने-कोने से श्री विमल मित्र जी को पाठकों के इतने पत्र मिले कि स्वयं उन्हें भी चकित रह जाना पड़ा।...इसी संकलन में एक कहानी है—‘कहानी एक मन्दिर की’ एक सामान्य सा कथानक...! लेकिन इस सामान्य-से कथानक में विमल दा की असामान्य उक्ति हमें चमत्कृत कर डालती है—‘‘संख्या के आधार पर जिस देश की किस्मत का फैसला होता है, उस देश को बहुतेरी तकलीफों का सामना करना पड़ता है। इस तथ्य को मैंने बहुत पहले ही इतिहास के पन्नों से ढूँढ़ निकाला है।...(इसीलिए) मैं हमेशा ही अल्प संख्या वालों के दल में रहा हूँ।’’ इसी प्रकार ‘बादशाह की वापसी’ कहानी में लेखक ने एक संवाद में कहलाया है—‘‘बेटा’ आदमी का स्वभाव ही ऐसा होता है। कोई उसे नुकसान पहुँचाये या नहीं, वह दूसरों को नुकसान जरूर पहुँचायेगा। इसीलिए तो कहती हूँ आदमी बड़ा ही खतरनाक जानवर होता है।’’ मानव-स्वभाव की कैसी सटीक व्याख्या है! इसी तरह ‘फर्स्ट कौन?’ कहानी जहां हमारे मर्म को छू लेती है, वहीं ‘विगत वसन्त’ के नायक की ट्रैजेडी हमें व्यथित करती है। किस-किस कहानी का नाम गिनाऊं? ‘खेल-खेल में’, ‘अभिनय’, ‘डोरी’, ‘पन्ना जोगलेकर’, ‘असली-नकली’ एवं किस्सा एक दावत का’—सबों में आप अलग-अलग वैशिष्टय पायेंगे। विनम्रता के साथ कहूँगा कि सभी कहानियाँ बेजोड़ हैं। को बड़-छोट कहत अपराधू...!

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