लोगों की राय
नाटक-एकाँकी >>
माटीगाड़ी
माटीगाड़ी
प्रकाशक :
राजकमल प्रकाशन |
प्रकाशित वर्ष : 2012 |
पृष्ठ :100
मुखपृष्ठ :
सजिल्द
|
पुस्तक क्रमांक : 8451
|
आईएसबीएन :9788126722273 |
 |
|
4 पाठकों को प्रिय
192 पाठक हैं
|
**"सुलभ की 'बिदेसिया' पारंपरिक रूप को नये ढंग से प्रस्तुत करती है, जो स्थानीय जड़ों को आधुनिक संदर्भों में लाकर एक नई नाट्य अनुभूति प्रदान करती है, जबकि 'माटीगाड़ी' प्रेम और सामाजिक विषयों की जटिलता को हिंदी और भोजपुरी के समृद्ध प्रयोग के माध्यम से उजागर करती है।"**
‘बिदेसिया’ के विन्यास के बावजूद संरचनात्मक गठन एक नए ही शिल्प की तरफ़ इशारा करता है जो सुलभ की अपनी निर्मिति है। मौलिकता का एक सबूत तो इनकी अभिव्यक्ति है जो समकालीन जीवन की विसंगतियों के जबर्दस्त प्रतिरोध से जन्मी हैं। पारम्परिक प्रविधि को समकालीन सन्दर्भों में रखकर सुलभ ने उसे समकालीन बनाया है और उसकी सम्प्रेषण-क्षमता का बहुविध विस्तार किया है। एक अर्थ में यह नाटक अपनी स्थानीयता का अतिक्रमण भी है तो दूसरे अर्थ में स्थानीयता का केन्द्रीयकरण भी क्योंकि जब तक स्थानीयता केन्द्रीयता हासिल नहीं करती, तब तक वह सार्वजनिक जीवन की समग्र प्रस्तुति नहीं बनती। ‘माटीगाड़ी’ में सुलभ का नाट्यकौशल अपने पूरे रंग में है। प्रेम की केन्द्रीय संवेदना लेकर सुलभ ने इस नाटक में वसन्तसेना और चारुदत्त के प्रेम संबंध में अनेक स्तरों को पिरोया है, जिससे यह नाटक जातिवादी उन्माद, राजनीतिक पाखंड, सामाजिक विडम्बनाओं की सशक्त अभिव्यक्ति बन गया है।
ज्योतिष जोशी, ‘कथादेश’
‘मृच्छकटिकम्’ की काव्यात्मक संवेदना और और शास्त्रीयता से मिलकर ‘बिदेसिया’ की लोकधर्मी चेतना नई नाट्यानुभूति देती है। शूद्रक का नाटक फिर से रचे जाने के क्रम में अपने बीजतत्त्वों का विकास करता है और समसामयिक हो उठता है। ‘माटीगाड़ी’ में हिन्दी तथा भोजपुरी का प्रयोग नए भाषिक स्वाद की अनुभूति कराता है।
नागेन्द्र ‘दैनिक हिन्दुस्तान’
मैं उपरोक्त पुस्तक खरीदना चाहता हूँ। भुगतान के लिए मुझे बैंक विवरण भेजें। मेरा डाक का पूर्ण पता निम्न है -
A PHP Error was encountered
Severity: Notice
Message: Undefined index: mxx
Filename: partials/footer.php
Line Number: 7
hellothai