अतिरिक्त >> हांथी के दांत हांथी के दांतअमृत राय
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हांथी के दांत पुस्तक का किंडल संस्करण...
किंडल संस्करण
अब ठाकुर परदुमन सिंह के चेहरे पर उनकी वह जालिम, बिच्छू के डंक-जैसी मूछें न थीं और चेहरा सफ़ाचट था जिस पर कुछ तो सेहत और कुछ शराब के कारण एक सिन्दूरी कूँची-सी फिरी रहती थी; मगर तब भी लोग डरते रहते थे क्योंकि डर कहीं बाहर से नहीं इंसान के दिल के भीतर से आता है। ठाकुर परदुमन सिंह का डर लोगों के भीतर बुरी तरह घर किये हुए था वैसे ही जैसे बूढ़ी दादियाँ बहुत बचपन से ही भूत का डर हमारे दिलों में बो देती हैं। ठाकुर परदुमन सिंह का डर भी कुछ ऐसा ही भूत का डर था। उनका बस चलता तो दिल के डेढ़ पाव गोश्त के साथ भी वह इस डर को निकाल फेंकते लेकिन वह काम इतना आसान न था और उन्हें रावल की याद थी, अच्छी तरह थी-गो बात पुरानी हो गयी थी मगर हिम्मत के धनी लोग जो एक बार ग़रीब के दिल में जगह पा जाते हैं वह जल्दी मरते नहीं क्योंकि उनके बाद उनकी कहानी जी उठती है......
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