अतिरिक्त >> नागफनी का देश नागफनी का देशअमृत राय
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नागफनी का देश पुस्तक का किंडल संस्करण...
किंडल संस्करण
कुमी सो रहा था। बेला सो रही थी। उसने जगने की कोई ज़रूरत नहीं समझी। आँख खुली थी मगर वह पड़ी रही। रनजीत अपने कमरे में गया। बत्ती जलायी। कमरे को वह सबेरे जैसा वह छोड़कर गया था वैसा ही पड़ा था। बिस्तर भी नहीं ठीक किया गया था। कमरे भर में माचिस और सिगरेट के जले टुकड़े पड़े थे। गर्द की इंच-इंच भर तह हर चीज़ पर जमी हुई थी। एक मेज़ पर नमूने के लिए आयी हुई दवाएँ गडमड पड़ी थीं, और उन्हीं के बीच एक वायलिन पड़ा था जिस पर भी दिन भर की गर्द जमी हुई थी। आलमारी में पचीस-तीस किताबें टेढ़ी-मेढ़ी लगी थीं। कुर्सी पर, बिस्तर पर, उतारे हुए कपड़े पड़े थे। चारपाई की पाटी पर बैठकर रनजीत ने कपड़े उतारे, उन्हें हैंगर में लगाया और बाथरूम में चला गया। अच्छी तरह मुँह-हाथ धोकर खाने के कमरे में आया उसका खाना प्लेट में निकालकर मेज़ पर रक़्खा था। बर्फ़ की तरह ठंडा। रनजीत एक निवाला उठाकर मुँह में डालता है और पीड़ा की एक हल्की मुस्कराहट उसके चेहरे पर खेल जाती है। इन्तहाई ख़ामोशी से वह उस सर्द खाने को खा लेता है–मुहब्बत के मर जाने पर भी भूख नहीं मरती–और खाना खाकर फिर अपने कमरे में आ जाता है। बिस्तर को जैसे-तैसे सोने क़ाबिल बनाता है और लेट जाता है। बड़ी बत्ती को बुझा देता है और पलंग के पास मेज़ पर रक्खे हुए लैंप को जला लेता है ताकि नींद आते ही फौ़रन बत्ती बुझाकर सो जाये। और नींद बुलाने के ख़याल से ही कहानी की एक किताब उठा लेता है। मगर नींद उसे नहीं आती। वह अब भी मुस्कराता रहता है, मगर दर्द बरदाश्त से बाहर होता जा रहा है। दिन तो काम-धंधे में, मिलने-जुलने में कट जाता है। मगर रात को वह अकेला पड़ जाता है और भूतों की टोलियाँ उस पर हमला करती हैं।
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