अतिरिक्त >> विद्रोह विद्रोहअमृत राय
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विद्रोह पुस्तक का आई पैड संस्करण...
आई पैड संस्करण
सोयी रात के सन्नाटे को चीरती हुई एक गोली छूटी। जाड़े की रात, तीन बजे थे। माँजी चौंककर उठ बैठीं पर थोड़ा ऊँचा सुनने लगी हैं, कुछ समझीं नहीं। नींद की बौखलाहट में यहाँ-वहाँ थोड़ा टटोलकर उन्होंने कमरे की बत्ती जलायी और बग़ल के कमरे में सोती शारदा को जगाने के लिए आगे बढ़ीं कि शारदा खुद घबरायी हुई आ पहुँची। पर समझ वह भी कुछ न पा रही थी कि तभी माँजी बोलीं-देख तो बेटी, लगता है रसोईघर में बिल्ली घुसी है! बटली-शटली कुछ गिरी थी अभी घिनौची से...
धत्, बटली गिरने से कहीं ऐसा धमाका होता है! शारदा को अकेले जाते डर लगा-अभी उस दिन शर्माजी के घर में रोशनदान से चोर घुसा था और एक घुस गया तो समझो सब घुस गये, दरवाज़ा खोलने भर की तो बात है। फिर ये चोर भी तो पहले वाले चोर नहीं, आजकल तो सबके हाथ में छुरा-तमंचा रहता है! हे भगवान्! शारदा खड़े-खड़े काँप गयी।
माँ भी साथ हो लीं तो वह आगे बढ़ी। छोटा सा तो घर, ज़रा आगे बढ़ते ही शारदा की नज़र बाबू के कमरे पर गयी। दरवाज़े की संधि में से रोशनी आ रही थी। बोली–आज तो बाबू अभी से जाग गये, लगता है नींद नहीं आयी। इस पुस्तक के कुछ पृष्ठ यहाँ देखें।
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