लोगों की राय

अतिरिक्त >> विद्रोह

विद्रोह

अमृत राय

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :120
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 8674
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

61 पाठक हैं

विद्रोह पुस्तक का आई पैड संस्करण...

Vidroh - A Hindi EBook By Amrit Rai

आई पैड संस्करण


सोयी रात के सन्नाटे को चीरती हुई एक गोली छूटी। जाड़े की रात, तीन बजे थे। माँजी चौंककर उठ बैठीं पर थोड़ा ऊँचा सुनने लगी हैं, कुछ समझीं नहीं। नींद की बौखलाहट में यहाँ-वहाँ थोड़ा टटोलकर उन्होंने कमरे की बत्ती जलायी और बग़ल के कमरे में सोती शारदा को जगाने के लिए आगे बढ़ीं कि शारदा खुद घबरायी हुई आ पहुँची। पर समझ वह भी कुछ न पा रही थी कि तभी माँजी बोलीं-देख तो बेटी, लगता है रसोईघर में बिल्ली घुसी है! बटली-शटली कुछ गिरी थी अभी घिनौची से...

धत्, बटली गिरने से कहीं ऐसा धमाका होता है! शारदा को अकेले जाते डर लगा-अभी उस दिन शर्माजी के घर में रोशनदान से चोर घुसा था और एक घुस गया तो समझो सब घुस गये, दरवाज़ा खोलने भर की तो बात है। फिर ये चोर भी तो पहले वाले चोर नहीं, आजकल तो सबके हाथ में छुरा-तमंचा रहता है! हे भगवान्! शारदा खड़े-खड़े काँप गयी।

माँ भी साथ हो लीं तो वह आगे बढ़ी। छोटा सा तो घर, ज़रा आगे बढ़ते ही शारदा की नज़र बाबू के कमरे पर गयी। दरवाज़े की संधि में से रोशनी आ रही थी। बोली–आज तो बाबू अभी से जाग गये, लगता है नींद नहीं आयी। इस पुस्तक के कुछ पृष्ठ यहाँ देखें।

प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book