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नारी विमर्श >> इन्द्रधनुष

इन्द्रधनुष

श्याम गुप्त

प्रकाशक : सुषमा प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :84
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 8784
आईएसबीएन :00000000

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नारी विमर्श पर नये आयामों को निरूपित करता उपन्यास

Ek Break Ke Baad

प्रकृति ने नारी-पुरुष को परस्पर पूरक बनाया है, किन्तु यह पूर्णता दैहिक सम्बन्धों से भी इतर हो सकती है, यह अवधारणा भारतीय संस्कृति, पौराणिक आख्यानों एवं प्राचीन ग्रन्थों में उपलब्ध है, किन्तु पाश्चात्य विद्वानों ने इस विचार के विपरीत नारी-पुरुष संबंध को केवल संकीर्ण परिधि में बंदी बना दिया है। भारत में विदेशी विद्वानों के विचारों को तर्क से परे श्रेष्ठ मान लिया जाता है।

इस विषय में वाम विचारक तो फ्रायड का आँख मूंदकर समर्थन करते हैं और भारतीय सांस्कृतिक परम्परायें जिनमें आत्मसंयम, आत्मानुशासन, ब्रह्मचर्य आदि की अवधारणायें उन्हें कपोल कल्पना लगती हैं। वस्तुतः इसके लिये मानसिक स्तर और संस्कारों की अपरिहार्यता नकारी नहीं जा सकती जो ऐसे लोगों के पास है ही नहीं जिससे संकीर्णता से बाहर निकलकर मानवीय सम्बन्धों को नयी दृष्टि से देखने में वे रुचि नहीं लेते क्योंकि वे समझते हैं कि इससे कहीं न कहीं भारतीय सभ्यता-संस्कृति का समर्थन हो जायेगा। वास्तव में उनका अस्तित्व तो भारतीय विचारों, अवधारणाओं के खण्डन तक ही सुरक्षित है।

नारी का स्वाभिमान, उसकी गरिमा और उसकी प्रतिष्ठा के लिये यह आवश्यक है कि उसे पुरुष के समकक्ष ही अधिकार प्राप्त हों जो केवल संवैधानिक दायरे तक ही सीमित न हों बल्कि सामाजिक स्तर पर भी उसका पालन हो।

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