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गीता प्रेस, गोरखपुर >> भक्त बालक

भक्त बालक

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :49
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 882
आईएसबीएन :81-293-0517-8

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भगवान् की महिमा का वर्णन...

इस प्रकार अधिकारी और प्रजा सभीका जीवन धर्म और सदाचारपर अवलम्बित था। राजाकी सेनामें सभी योद्धा-

सर्वे ते वैष्णवा वीराः सदा दानपरायणाः।
एकपत्नीव्रतयुताः संयतास्ते प्रियंवदाः॥

‘भगवद्भक्त, रणवीर, दीनोंपर दया करके उन्हें दान देनेवाले, एकपत्नीव्रती, सद्बुद्धियुक्त और प्रिय बोलनेवाले थे। अतएव राजाकी आज्ञा पाकर सभी वीर अर्जुनके साथ लोहा लेनेको तैयार हो गये। घोड़ा पकड़ लिया गया और नीति तथा धर्मशास्त्रके प्रगाढ़ पण्डित राजगुरु ऋषिवर शंख और लिखितके आज्ञानुसार यह भयानक मुनादी करवा दी गयी कि ‘अमुक समयतक सभी योद्धा युद्ध-क्षेत्रमें उपस्थित हो जायँ। जो ठीक समयपर नहीं पहुँचेगा, वह उबलते हुए तैलके कड़ाहेमें डलवा दिया जायगा। यह आज्ञा राजाके पोते, पुत्र और भ्राताओंपर समानरूपसे ही लागू होगी'-

न निर्गच्छति यः कश्चित् कटाहे तैलपूरिते।
पात्यते ज्वलिते घोरे नतृपुत्रसहोदराः॥

राजाके सभी सेनानायक, मन्त्री, भ्राता और सुबल, सुरथ, सम तथा सुदर्शन नामके चारों पुत्र रणक्षेत्रकी ओर चल दिये। सबसे छोटे राजकुमारका नाम सुधन्वा था। वीर सुधन्वा अपनी वीरप्रसविनी जननीसे आज्ञा माँगनेके लिये गया और वहाँ पहुँचकर मातृचरणों में सिर झुकाकर प्रणाम कर कहने लगा-‘माँ! मैं आज सौभाग्यसे प्रसिद्ध वीर अर्जुनसे युद्ध करनेके लिये जा रहा हूँ। आप आज्ञा दें ताकि मैं पार्थद्वारा सुरक्षित ‘हरि' (घोड़े) को जीतकर ला सकें।' वीरमाता भगवान्की परम भक्त थीं, उन्हें पता था कि इस बार रणसे पुत्रका वापस लौटना कठिन है। अतएव माताने कहा-

गच्छ पुत्र हरिं युद्धे विजित्य मम सन्निधौ।
हरिं चतुष्पदं त्यक्त्वा तं समानय मुक्तिदम्॥

‘बेटा! रणमें जाकर ‘हरि' को जीतकर अवश्य मेरे पास ले आ; परंतु लाना मुक्तिदाता हरिको, चार पैरवाले पशुको नहीं।' तेरे प्रतापी पिताने आजतक रणमें बड़े-बड़े वीरोंपर विजय प्राप्त की है, परंतु कंसहन्ता श्रीकृष्णके दर्शन उन्हें अबतक नहीं हुए। आज हे पुत्र! तू हमलोगोंको उन श्रीकृष्णके दर्शन करानेवाला हो। तू आज वही कर्म कर जिससे श्रीकृष्ण प्रसन्न हों। तेरे बड़े भाग्य हैं जो आज तू श्रीकृष्णको अपने इन नेत्रोंसे देख सकेगा, परंतु श्रीकृष्णका मिलना बहुत कठिन है। मैं तुझे एक उपाय बतलाती हूँ भगवान् भक्तवत्सल हैं, उन्होंने अपनी भक्तवत्सलताके कारण ही कुरुक्षेत्रके भीषण समरमें अर्जुनके रथके घोड़े हाँके थे। आज भी वे अर्जुनकी रक्षाके लिये आ सकते हैं, अतएव तू यदि अर्जुनको रणमें छका सका, उसको व्याकुल कर सका तो श्रीकृष्ण तेरे सामने प्रकट हो सकते हैं। मैंने सुना है, श्रीकृष्ण अपने भक्तको उसी प्रकार नहीं छोड़ सकते, जैसे वनमें गये हुए बछडेको छोड़कर गौ घर नहीं लौटती-

स्वभक्तं न त्यजत्येष मनाक् पुत्र मया श्रुतम्।
यथा वनगतं वत्सं त्यक्त्वा नायाति गौस्तथा॥

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    अनुक्रम

  1. गोविन्द
  2. मोहन
  3. धन्ना जाट
  4. चन्द्रहास
  5. सुधन्वा

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