लोगों की राय

गीता प्रेस, गोरखपुर >> भक्त बालक

भक्त बालक

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :49
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 882
आईएसबीएन :81-293-0517-8

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

53 पाठक हैं

भगवान् की महिमा का वर्णन...

अर्जुनने कहा, हे गोविन्द! जब आपका शुभागमन हो गया है तब मुझे क्या भय है? मैं निश्चय ही इन तीन बाणोंसे सुधन्वाको रणभूमिमें गिरा दूंगा। अब मेरे लिये महाकष्टकी कोई भी सम्भावना नहीं है। जहाँ आपके हाथमें मेरे जीवन-रथकी लगाम हैं, वहाँ मेरा कोई कैसे अनिष्ट कर सकता है। अर्जुनने पहला बाण हाथमें लिया, तब सुधन्वाने पुकारकर कहा, ‘गोविन्द! जिस प्रकार गोकुलमें गायोंकी रक्षाके लिये आपने गोवर्धन हाथपर उठा लिया था, उसी प्रकार आज अपने भक्त अर्जुनकी रक्षा कीजिये, परंतु स्मरण रहे, मैं भी आपका ही दासानुदास हूँ।' भगवान्ने भक्त सुधन्वाकी कीर्तिपताकाको चिरकालतक स्थायीरूपसे फहरने देने तथा भक्त अर्जुनकी रक्षाके लिये अपना गोवर्धनधारणका पुण्य बाणके साथ संयुक्त कर दिया। कालाग्निके समान अर्जुनका बाण चला, परंतु पुण्यात्मा भक्तवर सुधन्वाने क्षणभरमें उसे बीचमें ही काट डाला। राजा हंसध्वज सेनासमेत प्रसन्न हो गये।

पार्थ-बाणके कटते ही पृथ्वी काँपने लगी। देवता आश्चर्यमें डूब गये। भगवान्ने सुधन्वाके बल-पौरुष और प्राण-रक्षा-कार्यकी प्रशंसा करते हुए अर्जुनको दूसरा बाण सन्धान करनेकी आज्ञा दी और साथ ही अपने अन्य अनेक पुण्य अर्पण कर दिये। सुधन्वाने कहा-‘गोविन्द! धन्य है तुम्हारी लीला! पर याद रहे, यह तुम्हारा दास भी तुम्हारी लीलाओंसे अपरिचित नहीं है।' फिर अर्जुनसे कहा कि पार्थ! श्रीकृष्णका स्मरण करके बाण छोड़िये।' अर्जुनका प्रलयकारी भयानक बाण चला, परंतु वीर सुधन्वाने अपने प्रबल पुरुषार्थसे उसको भी बीचमें काट डाला। दूसरे बाणके कटते ही अर्जुन कुछ उदास हो गये और रणभूमिमें हाहाकार मच गया। चारों ओर सुधन्वाके वीरत्वकी प्रशंसा होने लगी।

तदनन्तर भगवान्ने तीसरा बाण सन्धान करनेकी आज्ञा दी और अपने रामावतारका पुण्य बाणके अर्पण कर दिया। बाणके पिछले भागमें ब्रह्माजी तथा बीचमें कालको जोड़कर नोकमें स्वयं स्थित हो गये, सुधन्वाने कहा, 'भगवन्! तुम मेरा वध करनेके लिये बाणमें स्वयं स्थित हुए हो, यह मैं जान गया हूँ। आओ नाथ! मुझे रणभूमिमें अपने चरणोंका आश्रय देकर कृतार्थ करो। मैं तो यही चाहता था। इससे बड़ा सौभाग्य मेरे लिये और कौन-सा होगा? अर्जुन! आपको धन्य है, जो साक्षात् नारायण आपके लिये केवल अपना पुण्य ही नहीं देते, प्रत्युत स्वयं बाणमें स्थित होते हैं। आपका निश्चय ही कल्याण होगा। परंतु सावधान! श्रीकृष्णकी कृपासे मैं आपके बाणको अवश्य ही काट दूंगा।' अर्जुनका बाण चला, परंतु वीरवर सुधन्वाने श्रीकृष्णका जप करते हुए तुरंत ही उसे काट डाला। सुधन्वाके द्वारा कटे हुए बाणका आधा भाग पृथ्वीपर गिर पड़ा। इस बाणके कटते ही सारा चन्द्रमण्डल काँप गया। भक्त सुधन्वाके प्रणकी रक्षा हुई। अब अर्जुनके प्रणकी रक्षा होगी, अतएव भगवत्प्रेरणासे बाणका आधा भाग ऊपरको उठा और उसने सुधन्वाके प्रकाशयुक्त कुण्डलवाले पुरुषार्थके भण्डार सुन्दर मस्तकको तुरंत धड़से अलग कर दिया।

सुधन्वाके मस्तकहीन कबन्धने पाण्डवसेनाको तहस-नहस कर डाला और उनका भाग्यवान् सिर आनन्दके साथ केशव, राम, नृसिंह आदि भगवन्नामोंका उच्चारण करता हुआ श्रीकृष्णके जगत्पावन चरणकमलोंमें गिर पड़ा।

तच्छिन्नं त्वरितं प्राप्तं शिरः कृष्णपदाम्बुजम्।
जपन् केशव रामेति नृसिंहेति मुदा युतम्॥

भगवान्ने चरणों में पड़े हुए सुन्दर सिरको प्रेमसे अपने दोनों हाथोंसे उठा लिया। इतनेमें ही वीर बालक सुधन्वाके मुखसे एक तेजकी ज्योति निकली और सबके देखते-देखते वह तुरंत ही श्रीकृष्णके मुखमें प्रवेश कर गयी। इस घटनाको किसीने नहीं जाना।

उभाभ्यामपि हस्ताभ्यां सुमुखं पश्यता तदा।
मुखाद्विनिर्गतं तेजः प्रविष्टं केशवानने॥
सुधन्वनोऽतिसत्त्वस्य कृष्णो जानाति नेतरः।

 

बोलो भक्त और उनके प्यारे भगवान्की जय!

 

* * *

 

...Prev |

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ

    अनुक्रम

  1. गोविन्द
  2. मोहन
  3. धन्ना जाट
  4. चन्द्रहास
  5. सुधन्वा

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book