गीता प्रेस, गोरखपुर >> भक्त बालक भक्त बालकहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान् की महिमा का वर्णन...
सुधन्वाने मन-ही-मन बारम्बार प्रणाम कर भगवान्की प्रेरणाके अनुसार प्रकाश्यमें कहा-
दृष्टस्त्वमसि गोविन्द पाण्डवार्थे समागतः।
सर्वगत्वं मया ज्ञातं त्वदीयं किल केशव॥
‘हे गोविन्द! अर्जुनके लिये पधारनेवाले आपके दर्शन मैंने कर लिये। हे केशव! मुझे आपकी सर्वव्यापकताका अनुभव हो गया।' इशारेसे भगवान्के प्रति गूढ़ शब्दों में इतना-सा कहकर मुसकराते हुए सुधन्वाने अर्जुनसे कहा-‘पार्थ! आपके सारथि श्रीकृष्ण आ गये हैं, अब तो मुझपर विजय प्राप्त करनेके लिये आप कोई प्रतिज्ञा करें। इन शब्दोंसे अर्जुनको मानो यह समझाया कि श्रीकृष्ण केवल तुम्हारे ही सारथि नहीं हैं, मेरे भी सर्वस्व हैं। तुम्हारी प्रतिज्ञाके लिये अपना पुण्य देकर तुम्हारी रक्षा करेंगे तो मेरी प्रतिज्ञाकी रक्षा केवल संकल्पसे ही कर देंगे। आज जगत् भगवान्की यह लीला भी देखेगा।
सुधन्वाकी ललकार सुन अर्जुनने तीन बाण निकालकर प्रतिज्ञा करते हुए कहा कि इन तीनों बाणों से तेरे सुन्दर मस्तकको नीचे गिरा दूंगा। यदि मैं ऐसा न कर सकें तो मेरे पूर्वज पुण्यहीन होकर नरकमें गिर पड़े। मेरा यह कथन सर्वथा सत्य है, इसमें तनिक भी मिथ्या नहीं है।' अर्जुनकी प्रतिज्ञाको सुनकर मरणोन्मत्त भक्तवर वीर सुधन्वाने भी हाथ उठाकर घोषणा की कि श्रीकृष्णके सम्मुख ही मैं आपके तीनों बाणोंको काट डालूंगा। मैं यदि ऐसा न कर सकें तो मुझे घोर गतिकी प्राप्ति हो।' दोनों ओर ही परस्परविरोधी प्रतिज्ञाएँ हो गयीं। दोनों ही महावीर और भगवान्के अनन्य भक्त हैं। दोनों ओरकी सेनाके सभी वीर तथा समस्त देवता एवं ऋषिगण इस आश्चर्यको देखनेके लिये उत्कण्ठित हो उठे।
सुधन्वाने बाण-वर्षासे श्रीकृष्णसहित अर्जुनको घायल करके रथ कुछ तोड़ डाला और बाणोंके कौशलसे वह रथको चक्रके समान घुमाने लगे। तदनन्तर दस बाणोंसे अर्जुनको ढककर एक ऐसा बाण मारा, जिससे अर्जुनका रथ चार सौ हाथ पीछे हट गया। यह देखकर भगवान्ने अर्जुनसे कहा, ‘भाई! तुमने सुधन्वाका पुरुषार्थ देखा? कैसा बाँका वीर है! तुमने मुझसे बिना ही परामर्श किये ऐसी कठिन प्रतिज्ञा करके अच्छा काम नहीं किया। जयद्रथवधमें कितना कष्ट हुआ था, क्या उस घटनाको तुम भूल गये? जिस वीरने तुम्हारे पैरोंके बलसे दबे हुए रथको एक ही बाणसे चार सौ हाथ पीछे हटा दिया, उसके सामने तुम कैसे जीत सकते हो। मेरी समझसे यह सुधन्वाके आत्यन्तिक ‘एकपत्नीव्रत' का महत्त्व है। इस एक पत्नीव्रतमें मैं और तुम दोनों ही बहुत पिछड़े हुए हैं। ऐसी स्थितिमें महान् कष्ट होना निश्चित ही है।'
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