गीता प्रेस, गोरखपुर >> भक्त बालक भक्त बालकहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान् की महिमा का वर्णन...
ब्राह्मणीने बहुत धीरज रखा, परंतु शेषतक रख नहीं सकी। वह रोकर कहने लगी, ‘बेटा! अपने दुःखकी दशा तुझको कैसे सुनाऊँ, हमलोग बहुत ही गरीब हैं, तेरे लिये नौकर रखनेको मेरे पास पैसा कहाँ है? माँकी आँखों में आँसू देखकर मोहन भी रो पड़ा। उसने कहा, 'माँ! तू रोती क्यों है? तुझे रोते देखकर मुझे भी रोना आता है। माँ! क्या हमारे और कोई नहीं है?' मोहनके सरल मर्मभेदी प्रश्नसे ब्राह्मणीका हृदय व्यथासे भर गया, पृथ्वी मानो पैरोंके नीचेसे खिसकने लगी, धीरज टूटने लगा, परंतु उसे तुरंत यह खयाल आया कि ईश्वर तो अनाथनाथ हैं, क्या वह हमारे नहीं हैं? यह स्मृति होते ही ब्राह्मणीके हृदयमें बल आ गया, आँसू अकस्मात् सूख गये; वह कहने लगी, ‘बेटा! है क्यों नहीं, गोपाल है।' बच्चेने पूछा, ‘माँ! गोपाल मेरे क्या लगते हैं?' स्नेहमयी ब्राह्मणीके मुंहसे निकल गया; ‘बेटा! गोपालभाई तेरा बड़ा भाई है।' बालकने कहा, “माँ! वह कहाँ रहते हैं? मैंने तो उन्हें कभी नहीं देखा!' ब्राह्मणीका हृदय भगवत्-प्रेमसे भर गया था। जब मनुष्य सब ओरसे सर्वथा निराश होकर भगवत्की शरणागतिपर विश्वास कर उसीकी ओर ताकता है, तब उसे तुरंत ही उधरसे आश्वासन और आश्रय मिल जाता है। उस अव्यक्त आश्रयको प्राप्त करते ही उसके हृदयमें बल, बुद्धि, तेज और ज्ञानका विकास स्वयमेव होने लगता है। भगवत्-प्रेमसे हृदय भर जाता है। ब्राह्मणी मानो निर्धान्त चित्तसे कहने लगी-
‘बेटा! मेरा वह गोपाल सभी जगह है, जल-स्थल, अनलअनिल, आकाश-पाताल, फल-फूल, समुद्र-सरिता–सभीमें वह रहता है। जगत्में ऐसा कोई स्थान नहीं, जहाँ वह न हो। परंतु वह सहजमें दीखता नहीं है, जब उसे देखनेके लिये कोई बहुत ही व्याकुल होता है तभी वह दीखता है। एक समय वृन्दावनमें गोपबालाओंके व्याकुल होनेपर उन्हें वह दीख पड़ा था। एक बार पाँच वर्षके बालक ध्रुवको दिखायी दिया था। जो एक बार उसे देख लेता है, वह तो उसकी सुन्दरता और स्वभावपर सदाके लिये मोहित हो जाता है।'
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