विविध >> मनोविश्लेषण मनोविश्लेषणसिगमंड फ्रायड
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‘ए जनरल इन्ट्रोडक्शन टु साइको-अनालिसिस’ का पूर्ण और प्रामाणिक हिन्दी अनुवाद
एक और भी बात है जिसके कारण ठीक-ठीक जांच के लिए आवश्यक परिस्थितियां नहीं
मिल सकतीं। स्वप्नों की जांच-पड़ताल में गवेषणा का विषय, अर्थात् स्वयं
स्वप्न भी अनिश्चित है। उदाहरण के लिए, भ्रम में स्पष्ट और निश्चित रूपरेखा
होती है। आपका रोगी साफ शब्दों में कहता है, 'मैं चीन का सम्राट हूं!' पर
स्वप्न ? इसका अधिकतर हिस्सा तो कहकर बताया ही नहीं जा सकता। जब कोई आदमी
किसी को स्वप्न सुनाता है तब इस बात की क्या गारंटी है कि उसने सही रूप में
सुनाया है, और उसे सुनाते हुए कुछ बदल नहीं दिया है, या अपनी याददाश्त धुंधली
होने के कारण उसका कुछ हिस्सा अपनी कल्पना से जोड़ने के लिए वह मजबूर नहीं
हुआ है? अधिकतर स्वप्न ज़रा भी याद नहीं रहते, और उनके छोटे-मोटे हिस्से को
छोड़कर, बाकी सब कुछ भूल जाता है। और क्या कोई वैज्ञानिक मनोविज्ञान या
रोगियों के इलाज का तरीका ऐसी सामग्री की बुनियाद पर खड़ा किया जा सकता है?
किसी आलोचना में कुछ अतिशयोक्ति देखकर हमें सन्देह पैदा हो जाता है। स्वप्न
को वैज्ञानिक गवेषणा का विषय बनाने के विरोध में पेश की गई दलीलें साफ तौर से
अति की सीमा तक पहुंचती हैं। तुच्छ होने के एतराज़ पर हम पहले 'गलतियों के
सिलसिले में विचार कर चुके हैं, और यह देख चुके हैं कि छोटे-छोटे संकेतों से
बड़ी-बड़ी बातें प्रत्यक्ष हो सकती है। जहां तक स्वप्नों की अस्पष्टता का
सम्बन्ध है, यह तो उनकी अन्य विशेषताओं की तरह एक विशेषता है-हमारे आदेश से
वस्तुएं अपनी विशेषताएं नहीं बदल लेंगी। इसके अलावा, ऐसे स्वप्न भी होते हैं
जो साफ और सुनिश्चित होते हैं। फिर, मनश्चिकित्सा-सम्बन्धी जांच-पड़ताल के
बहुत-से दूसरे विषयों में भी यह अनिश्चितता वाली बात होती है; उदाहरण के लिए,
बहुत-से रोगियों के मनोग्रस्तता2 वाले विचार; पर फिर भी बहुत-से प्रसिद्ध और
अनुभवी मनश्चिकित्सकों ने उनके अध्ययन में समय लगाया। मैं आपके सामने इस तरह
का वह 'केस' रखूगा जो डाक्टरी की दुकान करते हुए मेरे पास सबसे अंत में आया
था। रोगिणी ने अपनी अवस्था इन शब्दों में पेश की, 'मुझे कुछ ऐसा महसूस होता
है जैसे मैंने किसी जीवित प्राणी को, शायद किसी बच्चे को, नहीं, नहीं,शायद
कुत्ते को, घायल कर दिया है, या घायल करने की इच्छा की है, जैसे शायद मैंने
उसे पुल से नीचे धकेल दिया या कुछ और किया है। स्वप्न की अनिश्चित याद से जो
असुविधा होती है, उसे यह तय करके दूर किया जा सकता है कि जो कुछ स्वप्न देखने
वाला सुनाता है, ठीक वही स्वप्न माना जाए, और जो कुछ वह भूल गया है या याद
करने के बीच में बदल गया है, उसे छोड़ दिया जाए। अंत में आप इतनी आसानी से यह
बात नहीं कह सकते कि स्वप्न महत्त्वहीन चीज है। हम अपने निजी अनुभव से जानते
हैं कि स्वप्न से हम जिस मानसिक अवस्था में जागते हैं, वह सारे दिन बनी रहती
है, और डाक्टरों ने ऐसे रोगी देखे हैं, जिनमें मानसिक रोग स्वप्न से शुरू
हुआ-स्वप्न से उत्पन्न भ्रम जम गया। इसके अलावा, ऐतिहासिक व्यक्तियों के बारे
में कहा जाता है कि उनमें महत्त्वपूर्ण कार्य करने के आवेग उनके स्वप्नों से
ही पैदा हुए। इसलिए हम यह पूछना चाहते हैं : वैज्ञानिक क्षेत्रों में
स्वप्नों को हल्की नज़र से देखने का असली कारण क्या है? मेरी राय में, पहले
उनका जो बहुत अधिक मूल्य आंका जाता था, उसकी यह प्रतिक्रिया है। यह बात सब
जानते हैं कि गुज़रे हुए समय की घटनाओं को फिर से जोड़कर तैयार करना आसान काम
नहीं है, पर हम यह निश्चिन्त होकर मान सकते हैं (मज़ाक के लिए माफ करें,) कि
तीन हजार वर्ष और उससे भी अधिक समय पहले हमारे पूर्वज उसी तरह स्वप्न देखते
थे, जैसे हम आज देखते हैं। जहां तक हम जानते हैं, सब प्राचीन जातियां
स्वप्नों को बहुत महत्त्व देती थीं, और उनका व्यावहारिक मूल्य समझती थीं।
उन्हें उनसे भविष्य के लिए सूचनाएं मिलती थीं, और शकुन दिखाई देते थे।
यूनानियों और पूर्वी देशों के अन्य निवासियों में उस ज़माने में स्वप्न का
अर्थ पढ़ने वाले के बिना कोई युद्ध करना उसी तरह असम्भव था, जैसे जासूसी के
लिए शत्रुपक्ष में उतरने वाले सैनिकों के बिना आज यह असम्भव है। जब सिकन्दर
महान् ने अपनी दिग्विजय के लिए प्रस्थान किया था, तब सबसे प्रसिद्ध
स्वप्नशास्त्री उसके साथ थे। टायर नगर ने, जो उस समय द्वीप पर ही था, उसका
इतना प्रबल मुकाबला किया कि वह घेरा उठा लेने का विचार करने लगा। पर उसे एक
रात एक सेटायर (एक यूनानी देवता, जिसके पूंछ और लम्बे कान होते हैं)
विजय-हर्ष से नाचता दिखाई दिया और जब उसने स्वप्नशास्त्रियों को अपना स्वप्न
सुनाया, तब उन्होंने बताया कि यह नगर पर आपकी विजय का सूचक है। उसने हमले का
हुक्म दे दिया और वह तूफान की तरह टायर पर टूट पड़ा। ऐट्रस्कनों और रोमनों
में भविष्य की सूचक दूसरी विधियां काम में लाई जाती थीं, पर सारे यूनानी-रोमन
काल में स्वप्नों के निर्वचन (अर्थ लगाने) का चलन रहा और इसे बड़ी ऊंची नज़र
से देखा जाता था। इस विषय के साहित्य की कम-से-कम मुख्य पुस्तक-डैल्डिस के
आरटेमीडोरस, जो सम्राट हैड्रीअन के ज़माने का बताया जाता है, द्वारा लिखित-तो
आज तक मिलती है। मैं यह नहीं बता सकता कि स्वप्न का अर्थ लगाने की कला का बाद
में कैसे ह्रास हो गया और कैसे स्वप्नों को निन्दनीय समझा जाने लगा। शिक्षा
की तरक्की से इसका विशेष सम्बन्ध नहीं हो सकता, क्योंकि मध्यकाल के अंधकारमय
हालात उस समय से बहुत बुरे थे, जब स्वप्नों का अर्थ लगाने की पुरानी परिपाटी
लोगों ने श्रद्धा के साथ अपनाई हुई थी। यह बात सच है कि धीरे-धीरे स्वप्न की
दिलचस्पी अन्धविश्वास के स्तर पर आ गई, और वह अशिक्षितों में ही कायम रही।
हमारे ज़माने में भी स्वप्न का अर्थ लगाने की कला अपने सबसे घटिया रूप में
मौजूद है, जिसमें भाग्य के खेलों में इनाम दिलाने वाली संख्याएं स्वप्नों से
जानने की कोशिश की जाती है। दूसरी ओर, आज के यथार्थ विज्ञान ने स्वप्न पर
बार-बार विचार किया है, पर उसका एकमात्र उद्देश्य सदा शरीर-विज्ञान-सम्बन्धी
सिद्धान्त1 पेश करना ही रहा है। डाक्टरों ने स्वभावतः स्वप्न को कभी भी
मानसिक प्रक्रम नहीं माना। उन्होंने इसे शारीरिक उद्दीपनों की मानसिक
अभिव्यक्ति ही माना है। बिन्ज ने 1876 में कहा था, 'स्वप्न शारीरिक प्रक्रम
है जो सदा बेकार और बहुत बार वस्तुतः विकृत तथा अस्वस्थ होता है। यह एक ऐसा
प्रक्रम है जिसमें और विश्व-आत्मा व अमरता की धारणा में वही सम्बन्ध है जो
नीले आकाश और गहरी झाड़ियों से भरी रेतीली धरती में।' मॉरी ने स्वप्नों की
तुलना संट वाइटस के नाच के आदेशात्मक झटकों से की है, और स्वस्थ मनुष्य की
सूत्रबद्ध चेष्टाओं से इसका भेद दिखाया है। पुराने ज़माने में यह कहा जाता था
कि स्वप्न की वस्तु उन ध्वनियों की तरह होगी जो 'किसी संगीत न जानने वाले के
अपनी दसों उंगलियां बाजे पर एकसाथ चलाने से पैदा होगी।'
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1. Tissues
2. Obsessive ideas
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