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‘ए जनरल इन्ट्रोडक्शन टु साइको-अनालिसिस’ का पूर्ण और प्रामाणिक हिन्दी अनुवाद
इस प्रकार, स्वप्नतन्त्र से हमारा यह अभिप्राय है। हमने इसके प्रक्रमों के
बारे में जो कुछ जाना है, उसके अलावा, व्यक्त स्वप्न में हमारी दिलचस्पी
अवश्य बहुत कम हो जाएगी। पर फिर भी व्यक्त स्वप्न के बारे में मैं दो-तीन
बातें कहूंगा, क्योंकि आखिरकार स्वप्न के इसी हिस्से में तो हमारा सीधा परिचय
होता है।
यह स्वाभाविक है कि व्यक्त स्वप्न का महत्त्व हमारी नज़रों में कुछ कम हो
जाए। वह सावधानी से बनाया हुआ है, या कई असम्बन्धित चित्रों का एक क्रममात्र
है, इस विषय में हमारी बहुत कुछ उपेक्षा हो जाएगी। किसी स्वप्न का बाहरी रूप
ऊपर से कितना ही सार्थक दीखने पर भी हम जानते हैं कि यह रूप स्वप्न-विपर्यास
के प्रक्रम द्वारा ही बना है, और इसका स्वप्न की अन्तर्वस्तु से कुछ भी
सम्बन्ध नहीं है। पर कभी-कभी स्वप्न से इस ऊपरी रूप का अर्थ भी होता है, और
यह बिना विपर्यास के, या मामूली विपर्यास करके गुप्त विचारों से एक
महत्त्वपूर्ण अंश को पेश करता है; पर हम इस नतीजे पर तब तक नहीं पहुंच सकते
जब तक हमने स्वप्न का अर्थ न लगा लिया हो, और इस तरह विपर्यास की मात्रा के
बारे में हम किसी विचार पर पहुंच गए हों। इसी तरह का सन्देह वहां होता है
जहां दो अवयवों में नज़दीकी सम्बन्ध मालूम होता है; यह सम्बन्ध इस बात का
मूल्यवान संकेत भी हो सकता है कि गुप्त स्वप्न के वे अवयव इसी प्रकार जुड़े
हुए हैं। पर कभी-कभी हमें यह निश्चित रूप से पता चल सकता है कि विचार जो चीज़
जुड़ी हुई है, वह स्वप्न में बहुत अलग-अलग हो गई है।
साधारणतया हमें व्यक्त स्वप्न के एक हिस्से की, दूसरे हिस्से के द्वारा, यह
मानकर व्याख्या करने की कोशिश करनी चाहिए कि जैसे स्वप्न एक सुसम्बद्ध
अवधारणा और वस्तुस्थिति-रूप-निरूपण है। अधिकतर अवस्थओं में इसकी तुलना किसी
ब्रेकिया पत्थर के टुकड़े से की जा सकती है, जिसमें विभिन्न किस्मों के
पत्थरों के टुकड़े सीमेंट से जुड़े रहते हैं, और उस पर दिखाई देने वाली
धारियां उन टुकड़ों की नहीं होतीं जिनसे यह बना है। सच तो यह है कि
स्वप्नतन्त्र में एक प्रक्रिया ऐसी होती है जिसे परवर्ती विशदन3 कहते हैं;
इसका उद्देश्य स्वप्नतन्त्र के तात्कालिक परिणामों को मिलाकर एक और काफी
सुसम्बद्ध समष्टि बना देना है। इस प्रक्रम में सामग्री प्रायः इस तरह सजाई
जाती हैं। जिससे वह समझ में आने के बिलकुल आयोग्य हो जाती है, और इसके लिए
बीच में जितनी बातें डालने की ज़रूरत हो, उतनी डाल दी जाती हैं।
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1. Sense-impressions
2. Regressive
3. Secondary elaboration
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