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‘ए जनरल इन्ट्रोडक्शन टु साइको-अनालिसिस’ का पूर्ण और प्रामाणिक हिन्दी अनुवाद
स्वप्नतन्त्र की एक और विशेषता भी भाषा के परिवर्धन में दिखाई देती है।
प्राचीन मिस्री भाषा में, और कुछ बाद की भाषाओं में भी, ध्वनियों का क्रम
बदलने से उसी मल विचार के लिए भिन्न-भिन्न शब्द बन जाते थे। अंग्रेजी और
जर्मन शब्दों के इस तरह के कुछ सादृश्य ये हैं (जर्मन शब्द काले टाइप में
हैं) :
टोप (बर्तन)-पौट; वोट-(कटौता) टब; हरी-रूह (विश्राम)-रेस्ट; बालकन
(शहतीर)-बीम; क्लोबेन (डंडा)-क्लब; वेट-टोवेन (प्रतीक्षा करना)।
लैटिन और जर्मन के सादृश्य :
कैपेयर-पैकन (पकड़ना); रेन-निएर (गुदा)।
यहां अकेले शब्दों में ध्वनियों का जैसा स्थान-परिवर्तन हुआ है, वैसा
स्वप्नतन्त्र द्वारा कई तरह से किया जाता है-अर्थ का उल्टा हो जाना, अर्थात्
विरोधी अर्थ का आ जाना, हम पहले देख चुके हैं। इसके अलावा, हम स्वप्नों में
देखते हैं कि स्थितियां उल्टी हो जाती हैं, या दो व्यक्तियों के सम्बन्ध उलट
जाते हैं, मानो वह दृश्य किसी उल्टी दुनिया में हो रहा है। स्वप्नों में
प्रायः खरगोश शिकारी का पीछा करता है। कभी-कभी घटनाओं का क्रम उलट जाता है,
और इस तरह स्वप्नों में कार्य पहले और कारण पीछे हो जाता है, जिससे हमें किसी
घटिया दर्जे के नाटक की बात याद आ जाती है, जिसमें नायक पहले गिर जाता है और
उसे मारने वाली गोली इसके बाद में चलाई जाती है। या ऐसे स्वप्न होते हैं
जिनमें अवयवों का सारा विन्यास या सिलसिला उल्टा हो जाता है। ये तब समझ में आ
सकते हैं जब अन्तिम अवयव को पहले और पहले अवयव को अन्त में रखा जाए। आपको याद
होगा कि स्वप्नप्रतीकात्मकता का अध्ययन करते हुए भी हमने यही बात देखी थी :
उसमें पानी में कूदने या गिरने का, या पानी में से निकलने का एक ही अर्थ
है-पैदा होना या पैदा करना; और सीढ़ियों से चढ़ने या उतरने का एक ही अर्थ है।
इससे हमें यह पता चलता है कि स्वप्न-विचारों को निरूपित करने में इतनी आज़ादी
होने से स्वप्न-विपर्यास को कितना लाभ हो जाता है।
स्वप्नतन्त्र की इन विशेषताओं को पुराने ढंग की विशेषताएं कहा जा सकता है।
इनमें भाषाओं या लिपियों की अभिव्यक्ति की आदिम रीतियां बनी हुई हैं और उनसे
वही कठिनाइयां सामने आती हैं, जिन पर हम बाद में इन विषयों की आलोचना करते
हुए विचार करेंगे।
अब इस विषय के कुछ और पहलुओं पर विचार करना है। यह स्पष्ट हो चका है कि
स्वप्नतन्त्र का कार्य गुप्त विचारों के शब्दों वाले रूप को अवबोध्य रूपों2
और अधिकतर दृष्टिगम्य प्रतिबिम्बों के रूप में बदलना है। हमारे विचार ऐसे
अवबोध्य या इन्द्रियगोचर रूपों में ही पैदा हुए थे। उनकी सबसे पुरानी सामग्री
और उनके परिवर्तन की सबसे पहली अवस्था इन इन्द्रिय संवेदनों1 की, या अधिक
यथार्थ रूप में कहें तो इनके स्मृतिचित्रों की ही थी। बाद में इन चित्रों में
शब्द जोड़े गए और वे एक-दूसरे से इस तरह बांध दिए गए जिससे विचार बन जाएं। इस
तरह स्वप्नतन्त्र हमारे विचारों पर प्रतिगामी2 अर्थात् उल्टी ओर चलने वाला
प्रक्रम करता है, और उसी रास्ते से लौटता है जिससे उनका परिवर्तन हुआ था। इस
प्रतिगमन के मार्ग में वे सब नई बातें, जो स्मृतिचित्रों का विचारों में
परिवर्तन होने के समय आई थीं, आवश्यक रूप से दूर हो जाती हैं।
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1. अंग्रेजी में क्लीब के दोनों अर्थ अब भी मौजूद हैं : To cleave (=अलग करना
और To cleave to (=चिपकना)-अंग्रेजी अनुवादक
2. Perceptual forms
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