धर्म एवं दर्शन >> हमारे पूज्य देवी-देवता हमारे पूज्य देवी-देवतास्वामी अवधेशानन्द गिरि
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’देवता’ का अर्थ दिव्य गुणों से संपन्न महान व्यक्तित्वों से है। जो सदा, बिना किसी अपेक्षा के सभी को देता है, उसे भी ’देवता’ कहा जाता है...
कात्यायनी
मां दुर्गा के छठवें स्वरूप का नाम 'कात्यायनी' है। इनका नाम कात्यायनी पड़ने की कथा इस प्रकार है-कत नामक एक प्रसिद्ध महर्षि थे। उनके पुत्र कात्य भी ऋषि हुए। इन्हीं कात्य के गोत्र में विश्व प्रसिद्ध महर्षि कात्यायन उत्पन्न हुए थे। उन्होंने भगवती परांबा की उपासना करते हुए वर्षों तक कठिन तपस्या की थी। उनकी इच्छा थी कि मां भगवती उनके घर में पुत्री के रूप में जन्म लें। मां ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली थी।
कुछ काल बाद जब दानव महिषासुर का अत्याचार पृथ्वी पर बहुत बढ़ गया तब भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश–तीनों ने अपने-अपने तेज का अंश देकर महिषासुर के विनाश के लिए एक देवी को उत्पन्न किया। महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की। इसी कारणवश ये 'कात्यायनी' कहलाईं। ऐसी भी कथा मिलती है कि महर्षि कात्यायन के यहां ये पुत्री के रूप में उत्पन्न हुई थीं। आश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेकर शुक्ल सप्तमी, अष्टमी तथा नवमी तक तीन दिन इन्होंने कात्यायन ऋषि की पूजा ग्रहण कर दशमी को महिषासुर का वध किया था। मां कत्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं।
भगवान कृष्ण को पति के रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने मां कात्यायनी की ही पूजा कालिंदी यमुना के तट पर की थी। ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं। इनका स्वरूप अत्यंत भव्य और दिव्य है। इनका वर्ण स्वर्ण के समान चमकीला और भास्वर है। इनकी चार भुजाएं हैं।
इनके दाईं तरफ का ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में है तथा नीचे वाला हाथ वरमुद्रा में है। इनके बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित है। इनका वाहन सिंह है।
दुर्गा पूजा के छठवे दिन मां कात्यायनी की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित होता है। योग साधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। इस चक्र में स्थित मन वाला साधक मां कात्यायनी के चरणों में अपना सर्वस्व निवेदित कर देता है। परिपूर्ण आत्मदान करने वाले ऐसे भक्त को सहज भाव से मां कात्यायनी देवी के दर्शन प्राप्त हो जाते हैं। मां कात्यायनी की भक्ति और उपासना करने से साधक को बड़ी सरलता से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष-चारों फलों की प्राप्ति हो जाती है।
ऐसा साधक इस लोक में स्थित रहकर भी अलौकिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है। उसके रोग, शोक, संताप, भय आदि सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं। जन्म-जन्मांतर के पापों को विनष्ट करने के लिए मां कात्यायनी की उपासना से अधिक सुगम और सरल मार्ग कोई दूसरा नहीं है। इनका उपासक निरंतर इनके सान्निध्य में रहकर परमपद का अधिकारी बन जाता है। अतः हमें सर्वतोभावेन मां कात्यायनी की पूजा-आराधना के लिए तत्पर होना चाहिए।
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