धर्म एवं दर्शन >> हमारे पूज्य देवी-देवता हमारे पूज्य देवी-देवतास्वामी अवधेशानन्द गिरि
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’देवता’ का अर्थ दिव्य गुणों से संपन्न महान व्यक्तित्वों से है। जो सदा, बिना किसी अपेक्षा के सभी को देता है, उसे भी ’देवता’ कहा जाता है...
कालरात्रि
मां दुर्गा की सातवीं शक्ति कालरात्रि' के नाम से जानी जाती है। इनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है, सिर के बाल बिखरे हुए हैं तथा गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं। ये तीनों नेत्र ब्रह्मांड के सदृश गोल हैं। इनसे विद्युत के समान चमकीली किरणें नि:सृत होती रहती हैं। इनकी नासिका के श्वास प्रश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वाला निकलती रहती है। इनका वाहन गर्दभ अर्थात गदहा है। ये ऊपर उठे हुए दाएं हाथ की वरमुद्रा से सभी को वर प्रदान करती हैं। इनका दाईं तरफ का नीचे वाला हाथ अभयमुद्रा में है। इनके बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा है तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग है।
मां कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है लेकिन ये सदैव शुभ फल देने वाली हैं। इसी कारण इनका एक नाम 'शुभंकरी' भी है। अतः भक्तों को इनसे किसी प्रकार भयभीत या आतंकित होने की आवश्यकता नहीं है। दुर्गा पूजा के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा और आराधना की जाती है। इस दिऩ साधक का मन सहस्रार चक्र में स्थित रहता है। उसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है। इस चक्र में स्थित होकर साधक का मन पूर्णत: मां कालरात्रि के स्वरूप में अवस्थित रहता है। वह उनके साक्षात्कार से मिलने वाले पुण्य का भागी हो जाता है। उसके समस्त पापों एवं विघ्नों का नाश हो जाता है। उसे अक्षय पुण्य-लोकों की प्राप्ति होती है।
मां कालरात्रि दुष्टों का नाश करने वाली हैं। दानव, दैत्य, राक्षस, भूत-प्रेत आदि इनके स्मरण मात्र से भयभीत होकर भाग जाते हैं। ये ग्रह-बाधाओं को भी दूर करने वाली हैं। इनके उपासक को अग्नि भय, जल भय, जंतु भय, शत्रु भय और रात्रि भय आदि कभी नहीं होते। इनकी कृपा से वह सर्वथा भयमुक्त हो जाता है। मां कालरात्रि के विग्रह को अपने हृदय में अवस्थित करके मनुष्य को एकनिष्ठ भाव से इनकी साधना करनी चाहिए। उसे यम, नियम एवं संयम का पालन करना चाहिए। इनकी उपासना से होने वाले शुभों की गणना नहीं की जा सकती। हमें निरंतर मां कालरात्रि का स्मरण, ध्यान और पूजन करना चाहिए।
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