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धर्म एवं दर्शन >> हमारे पूज्य देवी-देवता

हमारे पूज्य देवी-देवता

स्वामी अवधेशानन्द गिरि

प्रकाशक : मनोज पब्लिकेशन प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :208
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 8953
आईएसबीएन :9788131010860

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’देवता’ का अर्थ दिव्य गुणों से संपन्न महान व्यक्तित्वों से है। जो सदा, बिना किसी अपेक्षा के सभी को देता है, उसे भी ’देवता’ कहा जाता है...

नाग देवता


जैसे देश का सुचारु रूप से संचालन करने के लिए राजा के अधीन विभिन्न विभागों के मंत्री एवं उपमंत्री होते हैं, वैसे ही संसार को व्यवस्थित रूप से चलाने के लिए ईश्वर के अधीन देवता और उपदेवता होते हैं। यक्ष, ऋक्ष, गंधर्व, असुर, वानर, नाग आदि उपदेवता की श्रेणी में आते हैं। उपदेवों को ऋद्धि-सिद्धियां जन्म से ही प्राप्त होती हैं। ये जब जैसा रूप बनाना चाहें, तब वैसा रूप बना लेते हैं। विभिन्न ग्रंथों में इच्छाधारी नाग-नागिन का उल्लेख मिलता है। जैसे सुरासुरों की उत्पत्ति कश्यप ऋषि से हुई, वैसे ही 'महाभारत' के अनुसार कश्यप ऋषि की पत्नी कद्रू से एक हजार नागों की उत्पत्ति हुई।

उन नागों में बारह नागों-अनंत, वासुकि, शेष, पद्म, कंबल, कर्कोटक, अश्वतर, धृतराष्ट्र, शंखपाल, कालिय, तक्षक और पिंगल के नाम विशेषकर उल्लेखनीय हैं। नागों का निवास स्थान मुख्य रूप से नागलोक है और वहां उनके राजा वासुकि राज्य करते हैं। नागराज वासुकि प्रलयकर्ता भगवान शिव के गले में लिपटे रहते हैं। हजार फन वाले शेषनाग पर भगवान विष्णु शयन करते हैं। यह पृथ्वी शेषनाग के फणों पर ही टिकी हुई है।

जिस आस्तीक ऋषि ने जनमेजय का नाग-यज्ञ रुकवाया था, वह नागराज वासुकि की बहन जरत्कारु का पुत्र था। तक्षक नाग ने राजा परीक्षित को डंसा था। कर्कोटक नाग ने राज्यच्युत राजा नल को कलियुग के प्रभाव से बचाने के लिए डंसा था और छिपकर रहने के लिए नल का रूप बदल दिया था।

देव-पूजन में नवग्रहों के पूजन के बाद उनके दाएं-बाएं भाग में अधिदेवताओं और प्रत्यधिदेवताओं का पूजन होता है। प्रत्यधिदेवताओं के पूजन के समय राहु के बाएं भाग में सर्प देवता का आह्वान और स्थापन कर पूजन करने का विधान है। शिव-पूजन में शिवजी का पूजन करने से पहले सर्प-पूजन किया जाता है।

वैदिक काल से ही नाग पूजा होती आई है। चांदी, सोने, लकड़ी अथवा दीवार पर बने नाग पूजे जाते हैं। जिसके यहां नाग-पूजन की जैसी परंपरा चली आ रही है, उसी के अनुसार पूजन करना चाहिए। नाग-पूजन में सुगंधित फल या कमल के फूल लेने चाहिए। नैवेद्य में दूध और खीर का विधान है।

वर्षा ऋतु में नागों के निकलने का समय होता है। बिलों में जल भर जाने के कारण उन्हें विवश होकर बाहर निकलना पड़ता है। अतएव प्रत्यक्ष नागपूजन के लिए वर्षा काल ही उचित समय है। वर्षा ऋतु में श्रावण मास की शक्ल पंचमी यानी ‘नाग पंचमी' पूरे भारत में मनाया जाने वाला प्रमुख त्योहार है। नाग पंचमी को नाग-पूजन करने का विधान है।

कुछ लोग आशंका करते हैं कि नाग तो काल की रस्सी हैं। उनके काटने पर मृत्यु हो जाती है। फिर जनता का अनिष्ट करने वाले सर्पो का पूजन क्यों ? हमारी आर्य संस्कृति बड़ी उदार है। उसे ईश्वर निर्मित किसी वस्तु से द्वेष नहीं है। वह सभी जीवों में ईश्वर का वास मानती है। इसलिए हमारी संस्कृति सभी जीवों से प्रेम और सभी की पूजा करने की आज्ञा देती है। प्रत्यक्ष सर्प-पूजा करने पर भय हो सकता है किंतु सर्प की प्रतिमा-पूजन करने में कोई भय नहीं है।

 

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