अतिरिक्त >> महाभारत महाभारतगुरुदत्त
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पंचामृत देते समय देवपूजक अर्थात पुजारी जिस मंत्र का उच्चारण करता है, उसका अर्थ है- अकाल मृत्यु का हरण करने वाले और समस्त रोगों के विनाशक श्रीविष्णु का चरणोदक पीकर पुनर्जन्म नहीं होता...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
दुष्ट व्यक्ति साधारण कोटि का हो तो उसका बुरा परिणाम सीमित रहता है, परन्तु जब दुष्टता किसी सम्पन्न व्यक्ति अथवा राजपुरुष में आ जाती है तो उसका परिणाम होता है युद्ध। सभी युद्धों की यही कहानी है।
संसार का भीषणतम युद्ध था महाभारत जिसमें, कहते हैं, पचपन लाख से भी अधिक व्यक्ति मारे गये थे और वह भी केवल 18 दिन में। इस पर भी यह धर्म युद्ध था। क्यों और कैसे ?
यह कथा सुनिये संजय की जुबानी। संजय जिनका राज्य-परिवार से निकट का सम्बन्ध था और जो युद्ध के प्रत्यक्षदर्शी थे।
संसार का भीषणतम युद्ध था महाभारत जिसमें, कहते हैं, पचपन लाख से भी अधिक व्यक्ति मारे गये थे और वह भी केवल 18 दिन में। इस पर भी यह धर्म युद्ध था। क्यों और कैसे ?
यह कथा सुनिये संजय की जुबानी। संजय जिनका राज्य-परिवार से निकट का सम्बन्ध था और जो युद्ध के प्रत्यक्षदर्शी थे।
महाभारत
1
मैं महर्षि गवल्गण का पुत्र संजय हूँ।
इस समय मेरी आयु एक सौ पन्द्रह वर्ष की है। अब मुझे अपने इस शरीर का अन्त समीप दिखाई दे रहा है। इस कारण मैं अपने जीवन के कुछ अनुभव लिख जाना चाहता हूँ जिससे जो इन अनुभवों को पढ़ें और चाहें तो इनसे लाभ उठा सकें।
महाराज युधिष्ठिर तथा अन्य पाण्डव, द्रौपदी सहित स्वर्ग सिधार चुके हैं। इस समय अर्जुन के पौत्र महाराजा परीक्षित सिंहासन पर विराजमान हैं। देश में शान्ति है और धर्म-राज्य स्थापित है। यद्यपि कलियुग का आरम्भ हो चुका है और जैसा कि कहा जाता है कि कलियुग में अधर्म बढ़ जाता है, लोग अपने-पराये का विचार नहीं करते, स्वार्थी बन जाते हैं, इस पर भी अभी कलियुग का विशेष प्रभाव आरम्भ नहीं हुआ। इसका कारण है कौरव-पाण्डव युद्ध।
लगभग पच्चीस वर्ष पूर्व देश में एक भयंकर युद्ध हुआ था। इस युद्ध में पचपन लाख से भी अधिक सैनिक मारे गये थे और सब लगभग अठारह दिन के युद्ध में। जबसे सृष्टि बनी है, ऐसा भयंकर युद्ध नहीं हुआ होगा और कदाचित् सहस्रों वर्ष तक इस युद्ध को लोग भूलेंगे नहीं। लोग इस युद्ध से शिक्षा ग्रहण करेंगे और युद्ध को रोकने का प्रयास करते रहेंगे।
इस युद्ध का पूर्ण विवरण महर्षि व्यास अपने ग्रन्थ ‘जय’ में लिख गये हैं। मैंने वह विवरण सुना है, परन्तु वह ‘जय’ ग्रन्थ इतना बड़ा है कि साधारण लोग उसे पढ़ नहीं सकेंगे। साथ ही कई स्थानों पर विवरण भ्रमपूर्ण है और लोग उसे समझ नहीं सकेंगे। विद्वान लोग उसे पढ़ेंगे तथा साधारण प्रजा को उसमें तथ्य निकालकर समझाया करेंगे।
मेरा, महाराज धृतराष्ट्र तथा राज्य परिवार से घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है। युद्ध का मैं आंखों देखा साक्षी हूं। इस कारण मुझे बहुस-सी ऐसी बातें विदित हैं जो शायद महर्षि व्यास जानते तो होंगे, परन्तु उन बातों के पीछे जो पृष्ठभूमि थी, उसे वह समझ नहीं सके। इसी कारण मैं उन बातों को लिख देना चाहता हूं।
एक बात निश्चित है कि यह युद्ध धर्म-युद्ध था। इसमें धर्म की विजय हुई थी और अधर्म का नाश हुआ था। यद्यपि इसका भारी मूल्य देश तथा समाज को चुकाना पड़ा। परन्तु इसमें दोष जहां दुष्ट लोगों का है, वहां उन साधु जनों का भी है जो दुष्टों का सहन करते रहे। अवसर आने पर दुष्टों को उन्होंने दण्ड नहीं दिया। बाद में दुष्टों का बल इतना बढ़ गया कि इस भयंकर युद्ध द्वारा ही उनका नाश किया जा सका।
इस समय मेरी आयु एक सौ पन्द्रह वर्ष की है। अब मुझे अपने इस शरीर का अन्त समीप दिखाई दे रहा है। इस कारण मैं अपने जीवन के कुछ अनुभव लिख जाना चाहता हूँ जिससे जो इन अनुभवों को पढ़ें और चाहें तो इनसे लाभ उठा सकें।
महाराज युधिष्ठिर तथा अन्य पाण्डव, द्रौपदी सहित स्वर्ग सिधार चुके हैं। इस समय अर्जुन के पौत्र महाराजा परीक्षित सिंहासन पर विराजमान हैं। देश में शान्ति है और धर्म-राज्य स्थापित है। यद्यपि कलियुग का आरम्भ हो चुका है और जैसा कि कहा जाता है कि कलियुग में अधर्म बढ़ जाता है, लोग अपने-पराये का विचार नहीं करते, स्वार्थी बन जाते हैं, इस पर भी अभी कलियुग का विशेष प्रभाव आरम्भ नहीं हुआ। इसका कारण है कौरव-पाण्डव युद्ध।
लगभग पच्चीस वर्ष पूर्व देश में एक भयंकर युद्ध हुआ था। इस युद्ध में पचपन लाख से भी अधिक सैनिक मारे गये थे और सब लगभग अठारह दिन के युद्ध में। जबसे सृष्टि बनी है, ऐसा भयंकर युद्ध नहीं हुआ होगा और कदाचित् सहस्रों वर्ष तक इस युद्ध को लोग भूलेंगे नहीं। लोग इस युद्ध से शिक्षा ग्रहण करेंगे और युद्ध को रोकने का प्रयास करते रहेंगे।
इस युद्ध का पूर्ण विवरण महर्षि व्यास अपने ग्रन्थ ‘जय’ में लिख गये हैं। मैंने वह विवरण सुना है, परन्तु वह ‘जय’ ग्रन्थ इतना बड़ा है कि साधारण लोग उसे पढ़ नहीं सकेंगे। साथ ही कई स्थानों पर विवरण भ्रमपूर्ण है और लोग उसे समझ नहीं सकेंगे। विद्वान लोग उसे पढ़ेंगे तथा साधारण प्रजा को उसमें तथ्य निकालकर समझाया करेंगे।
मेरा, महाराज धृतराष्ट्र तथा राज्य परिवार से घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है। युद्ध का मैं आंखों देखा साक्षी हूं। इस कारण मुझे बहुस-सी ऐसी बातें विदित हैं जो शायद महर्षि व्यास जानते तो होंगे, परन्तु उन बातों के पीछे जो पृष्ठभूमि थी, उसे वह समझ नहीं सके। इसी कारण मैं उन बातों को लिख देना चाहता हूं।
एक बात निश्चित है कि यह युद्ध धर्म-युद्ध था। इसमें धर्म की विजय हुई थी और अधर्म का नाश हुआ था। यद्यपि इसका भारी मूल्य देश तथा समाज को चुकाना पड़ा। परन्तु इसमें दोष जहां दुष्ट लोगों का है, वहां उन साधु जनों का भी है जो दुष्टों का सहन करते रहे। अवसर आने पर दुष्टों को उन्होंने दण्ड नहीं दिया। बाद में दुष्टों का बल इतना बढ़ गया कि इस भयंकर युद्ध द्वारा ही उनका नाश किया जा सका।
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