कविता संग्रह >> काव्य दूत काव्य दूतश्याम गुप्त
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शब्दों की तूलिका से भावों के चित्र उकेरता काव्य-दूत...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
शब्दों की तूलिका से भावों के चित्र उकेरता काव्य-दूत
कविता के प्रयोजनों के रूप में बहुप्रचारित तथ्य कि कविता यश के
लिए, सम्मान के लिए, धन के लिए, उपदेश के लिए या
सिर्फ प्रार्थना के लिए या सिर्फ स्वान्तः सुखाय होती है, आज के
परिवेश में खटकने लगा है । यह सच है कि कविता से यश,
सम्मान, धन आदि की प्राप्ति हो सकती है किन्तु उसकी कुछ
और शर्ते भी हैं । उपदेश के लिए कविता का प्रयोग निसंदेह
प्रभावकारी है मगर उसकी अपनी शर्तें हैं । प्रार्थना एव स्वान्तः
सुखाय कविता मौन और एकान्त साधना की पोषक है ।
कविता जन-मन रंजन भाव से अभिभूत होकर लिखी जाय तो दूसरों को रिझाने के मानक गुणों से भरपूर होनी चाहिए । यहाँ जिस प्रसंग में इन सब बातों की चर्चा की जा रही है वह हैं शल्य चिकित्सा में निष्णात् रेल विभाग में सम्प्रति वरिष्ठ चिकित्सक डा. श्याम गुप्त की काव्यकृति ’काव्य-दूत’ । यह काव्य-कृति उनके भीतर की अकुलाहट एवं कुलबुलाहट से उत्पन्न भावातिरेक का परिणाम है । भावातिरेक की स्थिति में अपने को व्यक्त करने की मजबूरी में किसी भी विधा का चुनाव करने की मनस्थिति नहीं होती बल्कि यथाशीघ्र अपने को भारमुक्त करने जैसी स्थिति होती है अतः कवि कभी मुक्तछंद तो कभी छंदबद्ध कविता का सृजन करता है । तब न उसके भीतर का आलोचक उसे तंग करता है न छंद-शिल्प का नियंत्रण उसे बाँध पाता है । हां, इतना जरूर है उस स्थिति में कवि नंगे सच की भाँति वहाँ उपस्थित दिखाई देता है और वास्तव में कवि के मूलरूप की पहचान उसी रूप में हो पाती है ।
कविवर डा. श्याम गुप्ता अपनी इस काव्य कृति में उसी सहज भाव में दिखते हैं, बिल्कुल बेतकल्लुफ । उनकी इस काव्य-कृति में जो दो खण्डों में विभाजित है तीस-तीस रचनायें संग्रहीत हैं ।
इन रचनाओं में वर्ण्य-विषय के अनुसार देखें तो आध्यात्मिकता को अपने में समेटे जीवन दर्शन भी मिलता है तो कर्म की संप्रभुता सिद्ध करते हुए, सहिष्णुता प्रेरक उपदेश भी । उनकी कलम कहीं मेगनीफाइंग ग्लास की विशेषता लिए दिखाई देती है तो कहीं तूलिका की भांति मनोहारी रंगों के संयोजन से किसी चित्र को और भी मनोहारी बनाने में लगी हुई दिखती है । इन सभी स्थितियों में उनका कवि उसकी सार्थकता सिद्ध करने के लिये तर्कों का विशेष ढेर भी अपने आस-पास सहेजे दिखाई देता है । ’काव्य-दूत’ में संग्रहीत रचनाओं में नारी अपनी पूरी सम्प्रभुता के साथ अपने समस्त रूपों में दिखाई देती है । बचपन के अपन-तुपन खेलने से लेकर प्रेमिका, पत्नी, माँ, यहाँ तक कि आदि शक्ति के रूप में भी ।
वंदना
आवाहन
स्मृति-रेखायें
सूनी राहें
जीवन संदेश
कविता
जाने कौन
वह
अपन तुपन
माया
सुहाना जीवन
यादों के झरोखे से बिंदिया
मीरा
नीम के नीचे
गांव की गोरी
घाघरे वाली
वीणा
निडर
रजनी
क्या गीत सुनायें प्यार भरे
दूर क्षितिज के पार सफर
आज मैं टूटा हुआ हूँ गीत
बहने दो गम
चंचल धारा
राकापति
जिंदगी
हो गम न जहाँ
तुम्हारी आराधना
क्या लिखूं कैसे लिखूं
वह तो तुम थीं
तुम्हारे बिना
मैं शीघ्र आ रहा हूँ तनहाइयां
ज्ञान गंगा की ओर
जाने क्यों अब ये कलम
पूर्णाहुति
तुम अद्भुत हो
अन्नपूर्णा
यादों की एल्बम
दष्ठौन
स्वर्ग
छम छम पायल
समय
यादें
प्रथम यात्रा
आहट
महक
उपलब्धि
व्यस्त जीवन
तेरे प्यार की वो धूप सी जवाब
परवरिश और सस्कार साथी
पीछे मुडकर
शाश्वत
निर्मोही
मुक्ति
कविता जन-मन रंजन भाव से अभिभूत होकर लिखी जाय तो दूसरों को रिझाने के मानक गुणों से भरपूर होनी चाहिए । यहाँ जिस प्रसंग में इन सब बातों की चर्चा की जा रही है वह हैं शल्य चिकित्सा में निष्णात् रेल विभाग में सम्प्रति वरिष्ठ चिकित्सक डा. श्याम गुप्त की काव्यकृति ’काव्य-दूत’ । यह काव्य-कृति उनके भीतर की अकुलाहट एवं कुलबुलाहट से उत्पन्न भावातिरेक का परिणाम है । भावातिरेक की स्थिति में अपने को व्यक्त करने की मजबूरी में किसी भी विधा का चुनाव करने की मनस्थिति नहीं होती बल्कि यथाशीघ्र अपने को भारमुक्त करने जैसी स्थिति होती है अतः कवि कभी मुक्तछंद तो कभी छंदबद्ध कविता का सृजन करता है । तब न उसके भीतर का आलोचक उसे तंग करता है न छंद-शिल्प का नियंत्रण उसे बाँध पाता है । हां, इतना जरूर है उस स्थिति में कवि नंगे सच की भाँति वहाँ उपस्थित दिखाई देता है और वास्तव में कवि के मूलरूप की पहचान उसी रूप में हो पाती है ।
कविवर डा. श्याम गुप्ता अपनी इस काव्य कृति में उसी सहज भाव में दिखते हैं, बिल्कुल बेतकल्लुफ । उनकी इस काव्य-कृति में जो दो खण्डों में विभाजित है तीस-तीस रचनायें संग्रहीत हैं ।
इन रचनाओं में वर्ण्य-विषय के अनुसार देखें तो आध्यात्मिकता को अपने में समेटे जीवन दर्शन भी मिलता है तो कर्म की संप्रभुता सिद्ध करते हुए, सहिष्णुता प्रेरक उपदेश भी । उनकी कलम कहीं मेगनीफाइंग ग्लास की विशेषता लिए दिखाई देती है तो कहीं तूलिका की भांति मनोहारी रंगों के संयोजन से किसी चित्र को और भी मनोहारी बनाने में लगी हुई दिखती है । इन सभी स्थितियों में उनका कवि उसकी सार्थकता सिद्ध करने के लिये तर्कों का विशेष ढेर भी अपने आस-पास सहेजे दिखाई देता है । ’काव्य-दूत’ में संग्रहीत रचनाओं में नारी अपनी पूरी सम्प्रभुता के साथ अपने समस्त रूपों में दिखाई देती है । बचपन के अपन-तुपन खेलने से लेकर प्रेमिका, पत्नी, माँ, यहाँ तक कि आदि शक्ति के रूप में भी ।
अनुक्रम
प्रथम खंड
वंदना
आवाहन
स्मृति-रेखायें
सूनी राहें
जीवन संदेश
कविता
जाने कौन
वह
अपन तुपन
माया
सुहाना जीवन
यादों के झरोखे से बिंदिया
मीरा
नीम के नीचे
गांव की गोरी
घाघरे वाली
वीणा
निडर
रजनी
क्या गीत सुनायें प्यार भरे
दूर क्षितिज के पार सफर
आज मैं टूटा हुआ हूँ गीत
बहने दो गम
चंचल धारा
राकापति
जिंदगी
हो गम न जहाँ
द्वितीय खण्ड
तुम्हारी आराधना
क्या लिखूं कैसे लिखूं
वह तो तुम थीं
तुम्हारे बिना
मैं शीघ्र आ रहा हूँ तनहाइयां
ज्ञान गंगा की ओर
जाने क्यों अब ये कलम
पूर्णाहुति
तुम अद्भुत हो
अन्नपूर्णा
यादों की एल्बम
दष्ठौन
स्वर्ग
छम छम पायल
समय
यादें
प्रथम यात्रा
आहट
महक
उपलब्धि
व्यस्त जीवन
तेरे प्यार की वो धूप सी जवाब
परवरिश और सस्कार साथी
पीछे मुडकर
शाश्वत
निर्मोही
मुक्ति
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