कविता संग्रह >> काव्य निर्झरिणी काव्य निर्झरिणीश्याम गुप्त
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‘‘मुक्ति का पाना है जीवन, भगवन्लय हो जाना जीवन,
मुक्ति का सन्देश यही है फिर से मिले सुहाना जीवन।‘‘
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
‘ ’ ‘सोना है‘ कविता में कवि भारत-भूमि की महिमा दर्शाता है। ‘आँसू है या पानी है‘ में कवि ऑसुंओं को भाबुकता के पलों से जोडकर कविता को संवेदना से भरपूर करता है। ‘झर-झर जीवन‘ में जीवन के विविध आयाम मुखर होते हैं, अन्त में निष्कर्ण की पंक्तियाँ देखिए-
‘‘मुक्ति का पाना है जीवन, भगवन्लय हो जाना जीवन, मुक्ति का सन्देश यही है फिर से मिले सुहाना जीवन।‘‘
पर्यावरण के प्रति जागरूक कवि ‘हरियाली रहे में प्रश्न करता है-
‘‘बिल्डिंगों और सड़कों से पट गई है सारी धरा,
कैसे शस्य श्यामल बनी धरती निराली रहे।‘
कहैं ‘श्याम‘ जहर उगलता है सारा शहर,
क्यों न हो प्रदूषण घोर, कैसे हरियाली रहे।‘‘
‘उठो कवि‘ में कवि के वर्तमान दायित्व पर विचार एव मार्ग दर्शन भी है। इस विकसित प्रौद्योगिकी उपहार कम्यूटर युग में कवि कम्प्यूटर आया‘ में संचार क्रान्ति की चर्चा करता है और सामाजिक बदलाव की स्थिति दर्शाता है। ‘नारी अपने बंधन खोले‘ में वह नारी को प्रगति हेतु प्रेरित करता है ‘नटवर नागर कविता में कवि कलयुगी परिवर्तनों पर कटाक्ष करता है।
‘श्याम-मधुशाला‘ में नशे का दुष्प्रभाव दर्शाते वह कहता है-
‘गाडी लेकर चला ड्राईवर और गले में है हाला,
हाथ-पाँव है काँप रहे, कैसे डाले गति पर ताला।
‘वह कौन में‘ कवि रहस्यमयी विराट शक्ति के प्रति नतमस्तक है। ‘कर्म-अभिनन्दन‘ में कवि श्रम की महिमा का बखान करके मनुष्य को प्रेरणा देता है-
‘चाहे जितना पथिक थको तुम, बार बार आरम्भ करो, विजय-श्री की चाहत है तो पुन: कर्म आरम्भ करो।
‘ज्ञान और कर्म‘ दर्शन प्रधान रचना है जिसमें अभिमान को ज्ञान-प्राप्ति की राह में बाधक माना गया है।
‘सुनामी लहर क्यों आई?‘ रचना में कवि इस दैविक आपदा से क्षुब्ध है और अपनी करुणा उडेल कर शिव से प्रार्थना करता है-
‘है विनती भोले शंकर से, न फिर से ये कहर आये न हद हो पाप की हमसे, घड़ा जल्दी छलक जाये।‘
ऊपर के वक्तव्य के आधार पर यह का जा सकता है कि कवि की यात्रा में ‘काव्य निर्झरणी‘ अगला मील का पत्थर है। उसमें निहित सम्मावनाओं का इस कृति में मनोरम चित्रण है।
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