लोगों की राय

अतिरिक्त >> देवांगना

देवांगना

आचार्य चतुरसेन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :128
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9009
आईएसबीएन :9789350642702

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

383 पाठक हैं

आस्था और प्रेम का धार्मिक कट्टरता और घृणा पर विजय का एक रोचक उपन्यास...

"नहीं प्रेमप्यारी जी, कहीं ऐसा भी हो सकता है? तुम्हें छोड़कर भला सुखदास की गत कहाँ है। पर भैया की सेवा करना भी मेरा धर्म है। लो अब मैं जाता हूँ।"

"तो फिर मुझे क्या कहते हो?"

"बस, इस झमेले से बेबाक हुआ कि मुझे नूपुर बनवाने हैं।"

"भाड़ में जाए नूपुर! मेरे लिए तुम बने रहो।"

"मैं तो पक्का बना-बनाया हूँ, चिन्ता मत करो।"

"फिर कब आओगे?"

"रोज ही आएँगे, आने में क्या है! सभी भिक्षु भिक्षा के लिए आते हैं। हम यहीं मिला करेंगे। अच्छा साध्वी, तेरा कल्याण हो, यह भिक्षु सुखानन्द चला।"

"हाय-हाय, निमोंही न बनी!"

"सब झूठमूठ का धन्धा है। प्यारी, झूठमूठ का धन्धा!"

“पर तनिक तो ठहरो !"

"अब नहीं, देखें भैया को वहाँ कैसे रक्खा गया है।"

"तो जाओ। फिर।' "जाता हूँ।" सुखदास धीरे-धीरे घर से बाहर चला गया। सुन्दरी आँखों में आँसू भरे एकटक देखती रही।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book