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देवांगना

आचार्य चतुरसेन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :128
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9009
आईएसबीएन :9789350642702

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आस्था और प्रेम का धार्मिक कट्टरता और घृणा पर विजय का एक रोचक उपन्यास...

"क्रोध न करो बच्चे, वह मार्ग मैं तुम्हें बताऊँगा। सुनो राजनीति की भाँति धर्मनीति भी टेढ़ी चाल चलती है। तुम जानते हो, हिन्दू धर्म जीव-हत्या का धर्म है। यज्ञ और धर्म के नाम पर बेचारे निरीह पशुओं का वध किया जाता है। यज्ञ के पवित्र कृत्यों के नाम पर मद्यपान किया जाता है। इस हिन्दू धर्म में स्त्रियों और मर्दों पर भी, उच्च जाति वालों ने पूरे अंकुश रख उन्हें पराधीन बनाया है। अछूतों के प्रति तथा छोटी जाति के प्रति तो अन्यायाचरण का अन्त ही नहीं है। वे देवदासियाँ जो धर्म बन्धन में बँधी हैं, पाप का जीवन व्यतीत करती हैं।"

दिवोदास सुनकर और मंजुघोषा का स्मरण करके अधीर हो उठा। परन्तु आचार्य कहते गए-"पुत्र, आश्चर्य मत करो, बौद्ध धर्म का जन्म इसी अधर्म के नाश के लिए हुआ है, किन्तु मूर्ख जनता को युक्ति से ही सीधा रास्ता बताया जा सकता है, उसी युक्ति को तुम छल कहते हो।"

"आचार्य, आपका मतलब क्या है?"

"यही कि मुझ पर विश्वास करो और देखो कि तुम्हें सूक्ष्म तत्व का ज्ञान किस भाँति प्राप्त होता है।"

"सूक्ष्म तत्त्व का या मिथ्या तत्त्व का ?’’

"अविनय मत करो पुत्र।"

"आप चाहते क्या हैं?"

"एक अच्छे काम में सहायता।"

"वह क्या है?"

"उस दिन उस देवदासी को तुमने देवी का गंधमाल्य दिया था न?"

"फिर?"

"जानते हो वह कौन है?"

"आप कहिए।"

"वह लिच्छवि राजकुमारी मंजुघोषा है।"

"तब फिर?"

"उसकी माता लिच्छवि पट्टराजमहिषी नृसिंह देव की पत्नी, छद्मवेश में यहाँ अपनी पुत्री के साथ, सुनयना नाम धारण करके देवदासियों में रहती थी। उसे सिद्धेश्वर ने अन्धकूप में डलवा दिया है।"

"किसलिए?" दिवोदास ने उत्तेजित होकर कहा।

"लिच्छविराज का गुप्त रत्नागार का पता पूछने के लिए।"

"धिक्कार है इस लालच पर।"

"बच्चा, उसे बचाना होगा। परोपकार भिक्षु का पहला धर्म है।"

"मुझे क्या करना होगा?"

"आज रात को मेरा एक सन्देश लेकर बन्दी गृह में जाना होगा।"

"क्या छिपकर?"

“हां!"

"नहीं।"

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