लोगों की राय

अतिरिक्त >> देवांगना

देवांगना

आचार्य चतुरसेन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :128
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9009
आईएसबीएन :9789350642702

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

383 पाठक हैं

आस्था और प्रेम का धार्मिक कट्टरता और घृणा पर विजय का एक रोचक उपन्यास...

वे केवल तेरह वर्ष ही वहाँ जीवित रहे। पर इस बीच उन्होंने बहुत काम किया। इसके बाद ही भारत से बौद्ध धर्म का लोप हो गया और भारत का धर्म स्रोत सूख गया।

इस समय भी भारत में बौद्धधर्म के बड़े केन्द्र थे, जहाँ विश्ववन्द्य आचार्य रहते थे। आजकल जिसे बिहार शरीफ कहते हैं, तब यह उदन्तपुरी कहाता था तथा यहाँ एक महाविहार था। इस विहार की स्थापना मगधेश्वर महाराज धर्मपाल ने की थी। गंगा तट, जिला भागलपुर, में विक्रमशिला विहार बहुत भारी विद्यापीठ था। यह सुल्तानगंज की दोनों टेकरियों पर अवस्थित था। इसकी स्थापना भी पालवंशी महाराज धर्मपाल ने 8वीं शताब्दी में की थी। उदन्तपुरी के निकट विश्वविख्यात नालन्दा विश्वविद्यालय था। बुद्धगया उस काल में वज़ासन कहाता था। दीपंकर श्रीज्ञान का जन्म भागलपुर के निकटवर्ती किसी सामन्त के घर हुआ था। पीछे उन्होंने नालन्दा, वज़ासन, विक्रमशिला, राजगृह तथा सुदूर चम्पा में जाकर ज्ञानार्जन किया था। और पीछे उनकी गणना विक्रमशिला के आठ महापण्डितों में की गई थी। उन्होंने अपने अन्तिम दिन तिब्बत को ज्ञान-दान देने में व्यतीत किए।

दसवीं-ग्यारहवीं शताब्दी का अन्त होते-होते उत्तर भारत में पालों, गहरवारों, स्थापित हो गए थे। ग्यारहवीं-बारहवीं शताब्दी में भारत की शक्ति 7 दरबारों में विभाजित थी, जो सब स्वतन्त्र थे। पूर्वी भारत में बौद्धों के वज़यानी सिद्धों का डंका बज रहा था, जिनके केन्द्र नालन्दा, विक्रमशिला, उदन्तपुरी और वज़ासन थे। पाल राजा सिद्धों के भक्त थे और उनके केन्द्र उन्हीं के द्वारा पनप रहे थे।

ईसा के पहिली दो-तीन शताब्दियों में यवन, शक, आभीर, गुर्जर आदि जातियाँ भारत में घुसीं, उस समय बौद्धों की विजय-वैजयन्ती देश में फहरा रही थी। उन्होंने विदेशियों को समाज में समानता के अधिकार दिए। ब्राह्मणों ने प्रथम तो म्लेक्ष कहकर तिरस्कार किया परन्तु पीछे जब इन म्लेक्षों में कनिष्क और मिनिन्दर जैसे श्रद्धालुओं को उन्होंने देखा, जिन्होंने मठ और मन्दिरों में सोने के ढेर लगा दिए थे, तो उन्होंने भी इन आगन्तुकों का स्वागत करना आरम्भ कर दिया। बौद्धों ने उन्हें जहाँ समानता का अधिकार दिया था, वहाँ उन्हें ब्राह्मणों ने अत्यन्त ऊँचा केवल अपने से एक दर्ज नीचा क्षत्रिय का स्थान दिया। उन्हें क्षत्रिय बना दिया और इन विदेशी नवनिर्मित क्षत्रियों के लिए अपना प्राचीन दार्शनिक धर्म छोड़ नया मोटा धर्म निर्माण कर लिया, जिसे समझने और उस पर आचरण करने में उन विदेशियों को कोई दिक्कत नहीं हुई। इन विदेशियों की टोलियाँ सामन्त राजाओं के रूप में संगठित हो गई और वे ब्राह्मण उनके पुरोहित, धर्मगुरु और राजनैतिक मन्त्री हो गए। इस प्रकार इस नये हिन्दू धर्म में प्रथम पुरोहित, उसके बाद ये सामन्त राजा रहे। राजनीति में प्रथम राजा और उसके बाद ब्राह्मण रहे।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book