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गीता प्रेस, गोरखपुर >> अनन्य भक्ति से भगवत्प्राप्ति

अनन्य भक्ति से भगवत्प्राप्ति

जयदयाल गोयन्दका

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2004
पृष्ठ :188
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 901
आईएसबीएन :81-293-0539-9

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इस पुस्तक में अनन्य भक्ति से भगवत्प्राप्ति के साधन को बताया गया है।

Annya Bhakti Se Bhagvatprapti -A Hindi Book by Jaidayal Goyandaka अनन्य भक्ति से भगवत्प्राप्ति - जयदयाल गोयन्दका

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

निवेदन

‘कल्याण’ मासिक पत्र में मेरे जो लेख पूर्व में प्रकाशित हो चुके हैं उनको ‘तत्व-चिन्तामणि’ के सात भागों में और ‘स्त्रियों के लिये कर्तव्य-शिक्षा,’ महत्वपूर्ण शिक्षा’ ‘परम साधन’ ‘मनुष्य़-जीवन की सफलता’ ‘परम शान्ति का मार्ग’ एवं ‘मनुष्य का परम कर्तव्य’ नामक पुस्तकों में संगृहीत किया गया था। इसी प्रकार कुछ भाइयों के विशेष आग्रह से ‘कल्याण’ के 37 वें वर्ष तक प्रकाशित 29 लेखों के साथ ‘मासिक महाभारत’ में प्रकाशित ‘महाभारत में जीवन को उन्नत बनाने वाले कुछ शिक्षाप्रद प्रसंग’ शीर्षक लेखकों को सम्मिलित करके यह एक नवीन संग्रह प्रकाशित किया जा रहा है । उक्त महाभारत-सम्बन्धी लेख में मानवमात्र की सर्वविध उन्नति के लिये गुरुभक्ति, मातृ-पितृ-भक्ति, ईश्वरभक्ति, तप, सत्य न्याय, वर्णाश्रमधर्म एवं तीर्थमहिमा, अतिथियों और गौओं की सेवा आदि का प्रधान-प्रधान स्थलों पर उदाहरण प्रस्तुत करते हुए निरूपण किया गया है, अतः वह सभी के लिये  परम उपादेय और रोचक है। इसके सिवा, अन्यान्य लेखों में धर्म, निष्काम कर्म, भक्ति, प्रेम, ज्ञान, सदाचार, संयम, वैराग्य आदि साधनों पर भी प्रचुर प्रकाश डाला है, जिससे साधकों  को अपने साधन के विघ्नों और दोषों को हटाकर साधन में उत्तरोत्तर अग्रसर होने के लिये बहुत सहायता मिल सकती है। एवं भगवान और महात्माओं के स्वरूप प्रभाव और स्वभाव आदिका दिग्दर्शन कराते हुए उन पर अतिशय श्रद्धा-विश्वास करके उनसे परम लाभ उठाने की प्रेरणा की गयी है, जो कि साधन का एक प्रधान महत्पूर्ण अंग है ।  

सभी पाठकों से नम्र निवेदन है कि वे यदि उचित समझें तो इन लेखों को मनोयोगपूर्वक पढ़ें  और अपनी रुचि, विश्वास और अधिकार के अनुरूप साधन को चुनकर उसको अनुष्ठान में लाने की कृपा करें। इन लेखों के अनुसार अपना जीवन बना लेने पर मनुष्य का अवश्य ही कल्याण हो सकता है; क्योंकि ये भगवान् महापुरुषों और शास्त्रों के वचनों के आधार पर लिखे हुए हैं; इसलिये जो कोई इनको पढ़कर इनसे लाभ उठावें, उनका मैं आभारी हूँ। बहुत सावधानी रखने पर भी पुस्तक में त्रुटियाँ रहनी स्वाभाविक हैं, उनके लिये विद्वान पाठकगण कृपापूर्वक क्षमा करें।

विनीत
जयदयाल गोयन्दका

नोट-संवत् 2050 से ‘आत्मोद्वारके साधन’ दो भागों में प्रकाशित की गयी है। 1-आत्मोद्वार के साधन, 2-अनन्य भक्तिसे भगवत्प्राप्ति।
 

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