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गीता प्रेस, गोरखपुर >> आदर्श भ्रातृ प्रेम

आदर्श भ्रातृ प्रेम

जयदयाल गोयन्दका

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :96
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 902
आईएसबीएन :00000

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इस पुस्तक में रामायण के आधार पर श्रीरामचन्द्र, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न-इन चारों भाइयों के पारस्परिक प्रेम और भक्ति का बहुत मनोहर चित्रण किया गया है।

Aadarsh Bhratra Prem-A Hindi Book BY Jaidayal Goyandaka - आदर्श भ्रातृ प्रेम - जयदयाल गोयन्दका

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

।।श्रीहरि:।।

नम्र निवेदन

रामायण में ‘आदर्श भ्रातृ-प्रेम’ नामक यह निबन्ध पुस्तक रूप में पाठकों के सामने उपस्थित करते हुए हमें बड़ी प्रसन्नता हो रही है। रामायण केवल इतिहास या काव्यग्रन्थ ही नहीं है, व मानव-जीवन को सुव्यवस्थित कल्याण-मार्ग पर सदा अग्रसर करते रहने के लिये एक महान् पथ प्रदर्शक भी है। रामायण में हमें मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् श्रीरामचन्द्रजी के यशोमय दिव्य शरीर की प्रत्यक्ष झाँकी मिलती है। रामायण केवल हिन्दू-संस्कृति का ही नहीं, मानव संस्कृति का भी प्राण है। यदि रामायण के ही आदर्शों पर मानव-जीवन का संगठन और संचालन किया जाय तो वह दिन दूर नहीं कि सर्वत्र रामराज्य के समान सुख-शान्ति का स्रोत्र बहने लगे।

प्रस्तुत पुस्तक में श्रीवाल्मीकि, श्रीअध्यात्म और श्रीतुलसीकृत रामायण के ही आधार पर श्रीरामचन्द्र, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न-इन चारों भाइयों के पारस्परिक प्रेम और भक्ति का बहुत ही मनोहर चित्रण किया गया है। आजकल दैहिक स्वार्थ और तुच्छ विषय-सुख की मृग-तृष्णा में फँसकर विवेकशून्य हो जाने के कारण जो बहुझा भाई-भाई में विद्वेष की अग्नि धधकती दिखायी देती है, उनको अनवरत प्रेम-वारिकी वर्षा से सदा के लिये बुझा देने में यह पुस्तक बहुत ही सहायक हो सकती है। इसकी भाषा सरल और प्रवाहपूर्ण है। पढ़ते-पढ़ते नेत्रों में प्रेम के आँसू उमड़ आते हैं।

इस पुस्तक की उपादेयता के विषय में इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि यह परम श्रद्धेय श्रीजयदयालजी गोयन्दका द्वारा रचित तत्त्व-चिन्तामणि नामक पुस्तक के द्वितीय भाग की एक किरण है। इसके प्रकाश में रहने पर भ्रातृ-विद्वेष रूपी डँसे जाने का भय सर्वथा दूर हो सकता है। अनेकों प्रेमीजनों के अनुरोध से सर्वसाधारण को अत्यन्त सुलभ करने के लिये यह निबन्ध अलग पुस्तकाकार में प्रकाशित किया गया है। प्रेमी पाठकों को इसे पढ़कर लाभ उठाना चाहिये।

-प्रकाशक


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