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बड़ी बेगम

आचार्य चतुरसेन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :175
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9021
आईएसबीएन :9789350643334

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बड़ी बेगम...

 

बल्लू चम्पावत

नागौर के महावीर राव अमरसिंह राठोर एक अनोखी-अष्टपटी तबीयत के सरदार थे। अपनी वीरता के कारण आसपास के प्रदेश में वे काफी विख्यात ही गये थे। परन्तु उनके उद्दण्ड स्वभाव से उनके पिता महाराज गजसिंह उनसे बहुत खीझ गये थे और पिता-पुत्र में मनमुटाव हो गया था। पिता-पुत्र का यह मनमुटाव बादशाह शाहजहाँ तक पहुँच चुका था। अमरसिंह जी यद्यपि महाराज गजसिंह के ज्येष्ठ पुत्र थे इसलिए वही राज्य के उत्तराधिकारी थे। परन्तु अपने मन के असन्तोष के कारण महाराज गजसिंह ने उन्हें राज्य न देकर अपने छोटे कुंवर जसवन्तसिंह को उत्तराधिकारी बनाने का संकल्प कर लिया था। और आगरे जाकर बादशाह शाहजहाँ के रूबरू यह बात तय कर ली थी। और इसीसे बादशाह ने अमरसिंह की राव की उपाधि और नागौर का परगना दे दिया था। तब से अमरसिंह जी अपने सरदारों सहित नागौर में ही रहते थे। उनके सरदार भी उन्हींके जैसे वीर, बांके और टेढ़ी तबीयत के आदमी थे। अमरसिंह को मेढ़े पालने का बड़ा शौक था। उन्होंने ऐसा नियम बना लिया था कि जब उनके मेढ़े जंगल में चरने जाते तो एक ताजीमी सरदार बारी-बारी से उनके साथ उनकी रक्षा के लिए जाता था।

बल्लूजी राव के एक ताजीमी सरदार थे। वे बड़े बांके, वीर और तलवार के धनी थे। एक बार जब इनकी बारी मेढ़े चराने की आयी तो इन्होंने साफ इन्कार कर दिया और कहा, "हमारा काम मेढ़े चराने का नहीं है।" राव अमरसिंह ने जब यह सुना तो उन्होंने क्रोध करके कहा, "ठीक है, बल्लूजी मेढ़े क्यों चरायेंगे, वे तो शाही फौज से मोरचा लेंगे।”

बल्लूजी ने जब यह व्यंग्य सुना तो तुरन्त जागीर छोड़कर वहाँ से चल दिये और चलते समय कह गये कि आप हमारे स्वामी हैं, आपके लिए जब कभी शाही फौज से मोरचा लेना पड़ेगा तभी चाकरी चुकाऊँगा। कुछ दिन वह बीकानेर रहे और कुछ दिन उदयपुर रहे, बाद में आगरे आकर बादशाह की नौकरी कर ली। बादशाह ने उनकी वीरता की बहुत तारीफ सुन रखी थी। उन्होंने उन्हें शाही फौज में एक अच्छी प्रतिष्ठा का पद दिया। वहाँ वह आराम से रहने लगे।

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