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बड़ी बेगम

आचार्य चतुरसेन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :175
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9021
आईएसबीएन :9789350643334

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बड़ी बेगम...

सुलतान स्वयं युद्ध के लिए सन्नद्ध हो गया। ज्योतिषियों ने कहा, "आज का दिन दोपहर में सात घड़ी बाद तक आपके लिए शुभ नहीं है।” उसने इनकी सलाह से स्नान कर हवन-जाप किया। दो हाथी-जिनपर काली झूलें पड़ी थीं और उनके चारों कोनों में सोना, चाँदी, मोती और जवाहरात बंधे थे-एक ब्राह्मण को दान दिये। उसने और भी खेरात दी। वह भोजन करने बैठा था कि तभी उसे सूचना मिली कि विश्वासघातियों ने सुलतान के विश्वासी अनुचर सैयद गफ्फार की, जो इस समय किले का प्रधान रक्षक था, कत्ल कर डाला है। उसके लिए कौर हराम हो गया। वह दस्तरखान छोड़ उठ खड़ा हुआ। सैयद गफ्फार किले का प्रधान रक्षक था। उसका स्थान स्वयं लेने के लिए वह खास-खास सरदारों सहित पीछे की ओर से किले में घुस गया।

परन्तु विश्वासघातियों ने सैयद गफ्फार को कत्ल करते ही दीवार पर चढ़ सफेद रूमाल दिखाकर अंग्रेज़ी सेना को इशारा कर दिया था और वह टीपू के पहुँचने के पहले ही टूटी दीवारों की राह रंगपट्टनम के किले में घुस आयी थी।

दीवान मीर सादिक ने जब सुना कि सुलतान खुद किले में सेना एकत्र कर रहा है तो उसने किले के फाटक बन्द करवा दिये। इससे सुलतान के बाहर आने के सब रास्ते बन्द हो गये। वह पहरेदारों को दरवाजा न खोलने की हिदायतें दे ही रहा था कि एक वीर सिपाही ने ललकारकर कहा, "कमबख्त, मलऊन, खुदातर्स, सुलतान को दुश्मनों के हवाले करके तू जान बचाकर भागना चाहता है? ले अपनी सजा!” उसने उसी दम उसके टुकड़े-टुकड़े कर डाले।

परन्तु सुलतान के लिए अब कुछ न रह गया था। किला शत्रु के हाथों चला गया था। उसने मुट्ठी-भर सिपाही इकट्ठे किये और शत्रुओं पर टूट पड़ा-जो टूटी हुई दीवारों से टिड्डी दल की भाँति किले में धंसे चले आ रहे थे। उसने चिल्लाकर कहा- "बहादुरो, हर एक को सिर्फ एक बार ही मरना है।”

उसने गोलियाँ चलानी शुरू की। कई अंग्रेज़ी अफसर मरकर गिर गये। अन्त में एक गोली उसकी छाती में बायीं तरफ आकर लगी। पर उसने न बन्दूक छोड़ी, न पीछे मुड़ा। इतने में एक और गोली उसकी छाती में दाहिनी ओर पार हो गयी। उसका घोड़ा भी मरकर गिर गया। उसकी पगड़ी धरती पर गिर गयी। दुश्मन

उसके नज़दीक आ गये। वह घिर गया। अन्त में पैदल, जख्मी सुलतान नंगे सिर बन्दूक फेंक तलवार घुमाने लगा। उसकी छाती से खून की फुहारें निकल रही थीं।

यह देख उसके कुछ सेवकों ने उसे पालकी में बैठा दिया और पालकी एक मेहराब के नीचे रख दी गयी। उसे सलाह दी गयी कि अब आप अपने को अंग्रेज़ों की दया पर छोड़ दीजिए। पर उसने न माना। इतने में कुछ अंग्रेज़ सिपाही पालकी के पास आ गये। एक ने खींचकर उसकी कमर से जड़ाऊ पेटी उतारनी चाही। अभी भी उसके हाथ में तलवार थी। उसने एक ही वार में उसका घुटना उड़ा दिया। इतने में एक गोली उसकी कनपटी में आ लगी और क्षण-भर में उस वीर नर की खोपड़ी चूर-चूर हो गयी। अब भी उसके दाहिने हाथ का पंजा तलवार के कब्जे पर कसा हुआ था।

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