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बड़ी बेगम

आचार्य चतुरसेन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :175
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9021
आईएसबीएन :9789350643334

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बड़ी बेगम...

दूसरे दिन जब अमरसिंह शाही दरबार में गये तो मीर सलावत खाँ ने उसने भरे दरबार में जुर्माना तलब किया। बादशाह का रुख बदला हुआ था ही। भला अमरसिंह जैसे दबंग सरदार यह अपमान कहाँ सहन कर सकते थे! बातचीत में दरबार का अदब भंग हो गया, सलावत खाँ ने अमरसिंह की गंवार कहा। अमरसिंह ने भी तत्काल कटार निकालकर सलावत खाँ के कलेजे में भोंक दी। उन्होंने बादशाह पर भी वार करना चाहा, लेकिन बादशाह दरबार से भाग खड़ा हुआ। चारों तरफ से दरबारी लोग तलवारें ले-लेकर अमरसिंह पर टूट पड़े, परन्तु महावीर अमरसिंह अपनी उसी कटार के बल पर शाही हुल्लड़ को चीर-फाड़कर बाहर मैदान में निकल आये, जहाँ उनका प्यारा घोड़ा खड़ा था। वे उछलकर अपने घोड़े पर सवार हो गये और बाहर जाने की चेष्टा करने लगे, परन्तु किलेदार ने किले के द्वार बन्द कर दिये और सेना ने चारों ओर से अमरसिंह को घेर लिया। अमरसिंह ने और हिम्मत की और वे घोड़े को एड़ देकर किले की बुर्जी पर चढ़ गये। वहाँ से उन्होंने विस्तृत मैदान की ओर दृष्टि फैलायी और पीछे तूफानी सेना को देखा-घोड़े को थपकी दी और कहा-"रख ले बेटा, राजपूती शान को!" फिर जो घोड़े को एड़ दी तो वह तीन फसीलों को फलांगकर मैदान में आ टूटा। घोड़ा तो वहीं ठौर रहा और अमरसिंह उठकर भाग गये और सही-सलामत अपने नौमहले में आकर आने वाली विपत्ति का सामना करने में जुट गये। उनके जितने वीर वहाँ थे, सबने तलवारें कस लीं और सब मरने-मारने की तैयार हो गये। उधर स्त्रियों ने आवश्यकता पड़ने पर घी-तेल आदि भन्डार में एकत्र कर जौहर करने का सरंजाम कर लिया। इधर यह हो ही रहा था शाही सेना ने आकर नौमहला घेर लिया और अमरसिंह की गिरफ्तार करने की माँग की।

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