अतिरिक्त >> बड़ी बेगम बड़ी बेगमआचार्य चतुरसेन
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बड़ी बेगम...
तलवार खटकने वाली ही थी कि अर्जुन गौड़-जो अमरसिंह का साला था-बादशाह से यह प्रण करके आया कि में अमरसिंह की मरा-जीता जैसा बनेगा-दरबार में ला हाजिर करूंगा। उसने विश्वासघात करने का इरादा कर लिया था, इसलिए उसने नौमहले में आकर अपनी बहन-अमरसिंह की रानी को समझाया कि रावजी की दरबार में भेज दो। मैं बादशाह से सुलह करा दूँगा। बादशाह से आगरे में रार ठानने में खेरियत नहीं है! उसने बहुत-सी कसमें खायीं और धर्म की दुहाई दी और अन्त में राव अमरसिंह उसपर विश्वास कर निहत्थे किले की ओर चल दिये। वे धड़कते कलेजे से घोड़े पर सवार हुए और रानी ने खून के आँसू भरकर उन्हें विदा किया।
परन्तु अर्जुन गौड़ ने तो विश्वासघात करने की ठान ही ली थी। वह उन्हें लल्लो-चप्पो करके किले की पीर तक ले आया। रावजी ज्यों ही खिड़की में सिर निकालकर भीतर जाने लगे, उसने पीछे से तलवार का करारा वार उनकी गर्दन पर किया और एक ही वार में राव अमरसिंह का सिर भुट्टा-सा ज़मीन पर लौटने लगा। अर्जुन गौड़ ने लपककर सिर उठा लिया और जाकर बादशाह की सेवा में पेश किया। उसे आशा थी कि बादशाह उसकी इस सेवा से प्रसन्न होकर उसे अमरसिंह की जागीर बख्श देंगे। उसने अपनी वीरता की डींग बहुत बढ़-चढ़कर काल्पनिक तौर पर मारी थी पर सत्य प्रकट हो गया और बादशाह ने क्रोध में आकर उस विश्वासघाती अर्जुन गौड़ को धरती में ज़िन्दा गड़वाकर कुत्तों से नुचवा डालने की आज्ञा दे दी, साथ ही अमरसिंह की लाश को अवज्ञा के तौर पर बुर्ज पर डाल देने का हुक्म दे दिया।
नौमहले में जब यह दारुण समाचार पहुँचा तो हाहाकार मच गया। जो थोड़े-बहुत राजपूत वहाँ थे-वे रावजी के भतीजे रामसिंह की अध्यक्षता में संगठित होकर रावजी की लाश को बुर्ज से लाने को तैयार हुए। परन्तु यह कुछ साधारण बात न थी। असंख्य शाही सेना से घिरे किले से लाश ले आना सहज काम न था। पर लाश लाकर रानी की सती कराना आवश्यक था। यह काम मुट्ठी-भर इन राजपूतों के योग्य न था।
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