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बड़ी बेगम

आचार्य चतुरसेन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :175
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9021
आईएसबीएन :9789350643334

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बड़ी बेगम...

अन्त में रानी को बल्लूजी का स्मरण हुआ। उन्होंने चलती बार जो वचन दिया था-उसकी याद दिलाकर रानी ने उसके पास खबर भेजी कि आप क्षत्रिय हैं तो अपने स्वामी की लाश लाकर हमें सती कराइए!

बल्लूजी उस समय एक घोड़े की परीक्षा कर रहे थे। यह घोड़ा उसी समय उदयपुर दरबार ने उनके पास भेंट-स्वरूप भेजा था। यह एक असाधारण जानवर था, जिसपर सवारी लेने योग्य कोई वीर उदयपुर में न था। महाराणा ने लिखा था-जैसे राजपूतों में बल्लूजी दुर्द्धर्ष हैं वैसे ही घोड़ों में यह घोड़ा दुर्द्धर्ष है, इसीलिए आपके पास भेजा है।

बल्लूजी ने ज्यों ही रानी का सन्देश सुना, वे तुरंत नंगी पीठ उसी घोड़े पर सवार हो गये। उन्होंने दो तलवारें बाँधीं। साथ में अपने अनुचरों को लिया और जो लोग उदयपुर से घोड़ा लाये थे, उनसे कहा, "महाराणा जी की कृपा का बदला चुकाने का अब समय है। उन्हें हमारा जुहार कहना और कहना-घोड़ा जैसा दुर्द्धर्ष है वैसे ही दुर्द्धर्ष कार्य में जा रहा है!" उन्होंने एड़ लगायी, असील घोड़ा हवा में उड़ चला। क्षण-भर में बल्लूजी किले की पौर पर थे। हज़ारों तलवारें-बछियाँ और तीर बरस रहे थे, परन्तु वे बढ़ते गये। लाशों के तूमार लगा दिये और बुर्ज पर जाकर लाश को उठा लिया और घोड़े पर रखा। क्षण-क्षण पर उनके साथी राजपूत एक-एक करके कम हो रहे थे। बल्लूजी के शरीर से भी खून की धारें बह रही थीं। शस्त्रों से उनका शरीर छलनी हो रहा था। उनके घोड़े की भी वही हालत थी, परन्तु अभी स्वामी की लाश निरापद नहीं थी। वे बढ़-बढ़कर हाथ मार रहे थे। वे कराल काल की भाँति प्रणांगण में देदीप्यमान हो रहे थे।

अन्त में उन्होंने लाश को रामसिंह को सुपुर्द करके कहा, "इसे नौमहले ले जाकर रानी को दे दी! जब रानी चिता में बैठ जाए और चिता में आग दे दी जाए, तो तोप चला देना-तब मैं समझेंगा कि कर्तव्य-मुक्त हुआ!”

रामसिंह अपने वीरों की गांसकर लाश ले नौमहले की ओर बढ़ा। उसकी और उसके वीरों की तलवारें करामात दिखा रही थीं। रास्ते में रुण्ड-मुण्ड लुढ़क रहे थे। उधर बल्लूजी पर्वत के समान मार्ग में अड़े थे-उनकी प्रतिज्ञा थी कि जब तक नीमहले से तोप का शब्द न हो जाएगा-वे मरेंगे नहीं, गिरेंगे भी नहीं! उनके चारों ओर लाशें ही लाशें थीं।

अन्त में सब कार्य सम्पन्न हो गये। लाश नौमहले पहुँच गयी। चिता में आग दे दी गयी। बाहर तलवारें झनझना रही थीं, भीतर से लाल ली उठी और नौमहला धांय-धांय जलने लगा। तोप का शब्द हुआ। बल्लूजी की मुट्ठी ढीली हुई और तलवार छूट गयी। फिर वे नक्षत्र की भाँति घोड़े से गिरे और फिर घोड़ा भी वहीं अमर हुआ।

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