लोगों की राय
अतिरिक्त >>
बड़ी बेगम
बड़ी बेगम
प्रकाशक :
राजपाल एंड सन्स |
प्रकाशित वर्ष : 2015 |
पृष्ठ :175
मुखपृष्ठ :
पेपरबैक
|
पुस्तक क्रमांक : 9021
|
आईएसबीएन :9789350643334 |
|
6 पाठकों को प्रिय
174 पाठक हैं
|
बड़ी बेगम...
दही की हांडी
सन् 1978 का ग्रीष्म समाप्त हो रहा था। सन्दुर प्रभात में सूर्य धीरे-धीरे ऊपर चढ़ रहा था। आकाश में जहाँ-तहाँ बदली दीख पड़ती थी। मारवाड़ के प्रतापी योद्धा जसवन्तसिंह का देहान्त हो चुका था और उनके वीर पुत्र अजीतसिंह जालौर में पड़े समय की प्रतीक्षा कर रहे थे। औरंगजेब का सूबेदार नाजिम कुली जोधपुर का गवर्नर था। मारवाड़ की निरीह प्रजा जसवन्तसिंह को खोकर जैसे-तैसे मुगलों के अत्याचार सहन कर रही थी। वृद्ध और मानवीयता का शत्रु औरंगजेब कब मृत्युशय्या पर गिरे, महाराज अजीतसिंह और दुर्गादास की कब अभिसन्धि प्राप्त हो, जोधपुर का कब उद्धार हो-लक्षाधिक मारवाड़ी प्रजा इसी प्रतीक्षा में थी।
सोजत गाँव से बाहर मुगल सेना पड़ाव डाले पड़ी थी। यह सिवान के किले की कुमुक लेकर जा रही थी जिसका रक्षक मुरदिल खाँ मेवाती था-और जिसे दो मास से राठौरों ने घेर रखा था।
दो सिपाही धीरे-धीरे झूमते-झामते गाँव में घुस रहे थे। उनके साथ एक खच्चार था। उसपर खाद्य-सामग्री लादी थी। जिस-जिस की उन्हें आवश्यकता होती थी, उसीको वे गाँव में जहाँ देखते, बिना संकोच उठाकर खच्चर पर डाल देते थे। दोनों अपनी भयानक आँखों से गाँव के आबाल-वृद्ध को घूरते हुए, घनी-काली दाढ़ी पर हाथ फेरते, कमर की तलवार को अनावश्यक रीति से हिलाते हुए घूम रहे थे। बच्चे और स्त्रियाँ भयभीत होकर घर में भाग रही थीं। वृद्ध पुरुष उन्हें देखते ही गर्दन नीची कर लेते थे। युवक चुपचाप दॉत भींचते और ठण्डी सांस भरते थे, पर गाँव में एक भी माई का लाल न था जो उनकी लूटपाट और अत्याचार का विरोध करता।
...Prev | Next...
मैं उपरोक्त पुस्तक खरीदना चाहता हूँ। भुगतान के लिए मुझे बैंक विवरण भेजें। मेरा डाक का पूर्ण पता निम्न है -
A PHP Error was encountered
Severity: Notice
Message: Undefined index: mxx
Filename: partials/footer.php
Line Number: 7
hellothai