अतिरिक्त >> बड़ी बेगम बड़ी बेगमआचार्य चतुरसेन
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बड़ी बेगम...
देखते-देखते सूरज सिर पर चढ़ आया। दोनों के शरीर पसीने से भीग गये। एक ने कहा, "उफ, गजब की गर्मी है! जल्दी करो, फिर, आग बरसने लगेगी। इस कम्बखत मुल्क में पानी भी तो नहीं बरसता!”
दूसरे ने कहा, "ठीक कहते हो, मगर दही? अभी तो दही लेना है।”
एक वृद्ध पुरुष नंगे बदन अपने घर के द्वार पर चारपाई पर बैठा 8-9 वर्ष के एक सुन्दर बालक से बातें कर रहा था। दोनों यम-सदृश व्यक्तियों को अपनी ही ओर आते देख बच्चा भय से वृद्ध की छाती में चिपक गया। उसने कम्पित स्वर में कहा, ‘बाबा! वे तुर्क आ रहे हैं।”
"कुछ भय नहीं है बेटा, तुम भीतर जाओ!” इतना कहकर वृद्ध ने बालक को भीतर भेज दिया और स्वयं आगे बढ़कर उनसे पूछने लगा-
"दही चाहिए बुड्ढ़े। दही घर में है?”
"मेरे यहाँ दही नहीं होता, मैं पूछकर देखता हूँ।”
"हम लोग खुद देख लेंगे!” यह कहकर दोनों उद्दण्ड सिपाही ठाकुर के घर में घुसने लगे।
वृद्ध ने बाधा देकर कहा-"यह नहीं हो सकता! वहाँ स्त्रियाँ हैं, मर्द कोई घर पर नहीं है। तुम लोग बाहर ही ठहरो !"
बिना उत्तर दिये ही एक सिपाही ने ज़ोर से बूढ़े के मुँह पर घूंसा मारा-वृद्ध धराशायी हुआ। दोनों सिपाही भीतर घुस गये और क्षण-भर में दही की भरी हुई हांडी उठाकर अपने रास्ते लगे। ग्रामवासी चित्रलिखित-से देखते रह गये।
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