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बड़ी बेगम

आचार्य चतुरसेन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :175
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9021
आईएसबीएन :9789350643334

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बड़ी बेगम...

भैंसों के लिए चारे का बोझ सिर पर लादे ठाकुर ने धीरे-धीरे गली में प्रवेश किया। गली के छोर पर मूक-मौन ग्रामवासी उसकी ओर ताकने लगे। ठाकुर ने बोझा आंगन में फेंकते हुए कहा, "हुआ क्या है, सब लोग बाहर क्यों हैं?”

"वे तुर्क जबर्दस्ती दही की हांडी उठा ले गये हैं।”

"जबर्दस्ती?”

ठाकुर ने होंठ चबाये और खूटी से तलवार उठाकर सूत ली। ठकुरानी ने कहा-

"सोच-समझकर काम करो। वे बादशाह के सिपाही हैं, गाँव में हमारे साथ कौन है?”

"क्या यह तलवार काफी नहीं है?” ठाकुर ने लाल-लाल आँखों से ठकुरानी को घूरकर कहा, ‘मुझसे माँगकर वे दही ले जा सकते थे! मैं क्या मना कर देता? पर जबर्दस्ती नहीं!”

ठाकुर ने पैर बढ़ाये। ठकुरानी ने पैर पकड़कर कहा, "इस बालक की ओर ती देखो!”

ठाकुर ने उलटकर क्षण-भर अपने 8 वर्षीय पुत्र को देखा-उसके नथुने फूल उठे। वह मुट्ठी में तलवार की मूठ पकड़े घर से बाहर हुआ। गाँव-भर देख रहा था।

दोनों सिपाही दो ही खेत जा पाये थे कि ठाकुर ने दोनों को धर दबाया। क्षण-भर ही में एक को ठाकुर ने टुकड़े-टुकड़े कर दिया और दूसरा घायल होकर भाग गया।

गाँव वालों ने देखा-बायें हाथ में दही की हांडी लटकाये और दाहिने हाथ में खून की तलवार लिये ठाकुर धीर गति से गाँव में लौट रहा है। किसी को कुछ कहने का साहस नहीं हुआ। ठाकुर ने आँख उठाकर किसीकी ओर देखा भी नहीं। वह चुपचाप घर में घुस गया। दही की हांडी उसने आँगन में रख दी। चादर कमर से खोलकर सहन में बिछा दी, ठकुरानी से कहा, "जी नकदी और जर-जेवर हैं, ले आओ!”

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