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बड़ी बेगम

आचार्य चतुरसेन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :175
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9021
आईएसबीएन :9789350643334

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बड़ी बेगम...

 

चोरी

(लास्य-रूपक : भाव-प्रदर्शन की सर्वश्रेष्ठ शैली पर रचित)

 

पहला दृश्य

(नव प्रणय)

“तो अब एक चुम्मा!” (ललचाहट से)

"नहीं, यह नहीं होगा।” (ललचाहट से)

"बस, एक!” (व्यग्रता से)

"नहीं-नहीं-नहीं।” (छिटककर)

"नहीं-नहीं-नहीं-नहीं!” (आतुरता से)

"मैंने तुमसे कह दिया है!” (कोप से)

"तो इसमें हर्ज तो बताओ?” (गम्भीरता से)

"बस, तुम यह बात ही न कही!” (झुंझलाहट से)

"इसमें कुछ भी कष्ट न होगा।” (समझाने के ढंग से)

“हो या न हो।” (नाराजी से)

"समय भी कुछ न लगेगा।” (अनुनय से)

"लगे चाहे न लगे।” (लापरवाही से)

"तुम मेरी इतनी प्रार्थना भी नहीं मनोगी?” (विनय से)

"नहीं।” (हठ से)

"बड़ी निष्ठुर हो!” (हताश स्वर से)

"अच्छा, यों ही सही।” (मान से)

(क्षणिक स्तब्ध रहकर और घुटनों के बल बैठकर)

"देखो, एक ! एक में क्या है? दूसरा माँगू तो.।” (बात कट गई)

"तो तुम मुझे खड़ी न रहने दोगे?” (क्रोध से)

"नहीं, नहीं, ऐसा न कही। देखी.।” (आतुरता से)

"लो, मैं जाती हूँ।” (जाने का आयोजन)

(खड़े होकर)

"हाय! हाय!! बड़ी निष्ठुर हो, बड़ी बेपीर हो।” (सांस खींचकर)

(चलते-चलते खड़ी होकर, पीछे फिरकर रिस, प्रेम और किन्चित् हास्य से देखना)

"तो तुम तंग क्यों करते हो?” (व्याज कोप से)

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