अतिरिक्त >> बड़ी बेगम बड़ी बेगमआचार्य चतुरसेन
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बड़ी बेगम...
दूसरा द्श्य
(मित्र)
"हाय!”(दु:ख से)
"क्यों, क्या हुआ?” (आश्चर्य से)
"ओफ्!” (गहरी सांस खींचकर)
“अरे मामला तो कहो ?” (कौतुक से)
"निर्दयी है, निष्ठुर है।” (निराश स्वर में)
"कौन? कौन?” (जल्दी से)
"वही, हाय, वही।” (व्याकुलता से)
"क्या मार ही डाला?” (दिल्लगी से)
"ऐसा करती, तो अच्छा था।” (अनुताप से)
"तो अधमरा कर छोड़ा?' (ज़रा दिल्लगी से)
"अब बचूँगा नहीं।” (निराशा से)
"अच्छा, हुआ क्या? साफ तो कहो।” (सहानुभूति से)
"नहीं देती, निर्दयी नहीं देती।” (झुंझलाहट से)
"क्या? रुपया, पैसा, हाथी, घोड़ा?” (कौतूहल से)
“अरे एक चुम्मा, सिर्फ एक माँगा था।” (अनुराग से)
"सिर्फ एक ?” (मजाक से)
"हाँ, तुम्हारी कसम।” (उतावली से)
"और नहीं दिया!” (नकली आश्चर्य से)
"बिलकुल नहीं, हाथ नहीं धरने दिया।” (निराशा से)
"यह तो बड़ी अद्भुत बात है! भला तुमने किस तरह माँगा था?”
(बनावटी गम्भीरता से)
"हर तरह, माँगकर, रिरियाकर, मिन्नत करके, समझाकर, रोकर, झींककर, पैर पकड़कर, नाक रगड़कर।” (उदासी से)
"अन्धेरे में या उजाले में?” (विनोद से)
"उजाले में। अन्धेरा होता, तो समझता पहचाना न होगा।” (उदासी से)
"हूँ।” (मग्न भाव से)
"अब उससे और क्या आशा करूं?” (अफसोस से)
"हूँ।” (गम्भीरता से)
"हूँ क्या? क्या निराश ही बैठूँ? तुम कुछ मदद न करोगे?” (आशा से)
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