अतिरिक्त >> बड़ी बेगम बड़ी बेगमआचार्य चतुरसेन
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बड़ी बेगम...
"वही तो, देखो, चुम्बन के दस हज़ार तरीके होते हैं।” (प्रौढ़ता से)
"दस हज़ार?” (आश्चर्य से)
"हाँ-हाँ, दस हज़ार, वह भी मोट लठ से। बारीक तो पचास हजार हैं।” (निश्चय से)
“प...चा...स....ह....जा....र.??? वाह-वाह ! अरे तो बाबा, सौ–दो सौ तो मुझे बता-मैं तो यही दस-पाँच जानता था-उलट-पलटकर आजमा बैठा।” (उत्सुकता से)
"वही ती। अच्छा, तुम एक काम करो।” (गम्भीरता से)
"काम मैं पचास कर दूँ, पर तरकीब ?” (उतावली से)
“ठहरो, तुम चुम्बन चुरा लो।” (स्थैर्य से)
"चुरा लू?” (आश्चर्य से)
“हाँ, चुरा लो।” (निश्चय से)
"चुम्बन?” (कुछ चकित भाव से)
"चुम्बन।” (दृढ़ता से)
"मैं!” (अचरज से)
"हाँ-हाँ, तुम।” (दृढ़ता से)
"सोते या जागते?” (जिज्ञासा से)
"जागते, सोते हुए चुम्बन की चोरी व्यर्थ है।” (समझाकर)
"सो कैसे दादा ? यह चोरी-ठगी कैसे?” (घबराकर)
"ऐसे कि मौका पा, बत्ती बुझा, चुपके से अन्धेरे में दबीच लो और बस गड़प...।” (संकेत से)
"बाप रे, अन्धेरे में? और जो वह चिल्ला उठे ?” (भय से)
"उसने क्या भाँग खायी है? बोली, कर सकोगे?” (आशा से)
"मैं?” (घबराकर)
"और नहीं तो क्या मैं?” (व्यंग्य से)
"हाँ-हाँ, दादा, यह काम तो तुम्हीं कर दो।” (अनुरोध से)
"ऐं, मैं कर दूँ?” (आश्चर्य से)
"हाँ! हाँ! तुम्हारा गुन मानूँगा। देखो, तुम्हारे पैरों पहूँ।” (अनुनय से)
"अरे नहीं, नहीं, ऐसा नहीं।” (घबराकर)
"डरो नहीं दादा, मेरी सूरत बनाकर.।” (गम्भीरता से)
"पागल, यह भी कहीं होता है?” (लापरवाही से)
"तुम्हें मेरी कसम, मेरी जान की कसम।” (आग्रह से)
"पर यह तो असम्भव है!” (स्थिरता से)
"तुम मुझे मरा ही देखो, जो न जाओ।” (आग्रह से)
"पर यह होगा कैसे?” (चिन्ता से)
"जैसे बने।” (व्यग्रता से)
"मैं जाऊँ?” (सन्देह से)
"हाँ-हाँ भैया, मैं बड़े संकट में हूँ।”
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