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बड़ी बेगम

आचार्य चतुरसेन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :175
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9021
आईएसबीएन :9789350643334

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बड़ी बेगम...

तीसरा दृश्य

(युग्म)

"हाय-हाय! क्या वह तुम थे?” (अनुराग से)

"हाँ, हम थे।” (मूर्खता से)

(आगे बढ़कर)

"सच?" (मधुरता से)

"और नहीं क्या झूठ?” (अकड़कर)

(निकट आकर)

"बड़े बुरे हो।” (लालसा-भरे नेत्रों से)

"बुरे ही सही।” (गर्व से)

(और सटकर उन्मुख होकर)

"बड़े छलिया हो।” (हास्यपूर्ण होंठों से)

"छलिया ही सही।” (स्तब्ध भाव से)

(आलिंगन करके)

"प्यारे! अब ऐसा न करना !’ (कम्पित होंठो से)

"ज़रूर करेंगे।” (दबंगता से)

(मुख के अत्यन्त निकट होंठ ले जाकर)

"देखें भला।” (नेत्रोन्मीलन)

"देख लेना।” (प्रसन्नता से फूलकर)

"नहीं-नहीं, प्यारे!” (भावावेश में प्रलुप्त होकर)

"हाँ-हाँ, यही मजा है।” (हँसकर)

(आँखें खोलकर)

"क्या फिर वैसा ही करोगे?” (निराश भाव से)

"ज़रूर करेंगे!” (दृढ़ता से)

(मुख से मुख मिलाकर)

“करो फिर ?” (नेत्रोन्मीलन)

(अति साधारण स्पष्ट चुम्बन)

"झूठे!” (क्रोध से)

"सच्चे!” (व्यंग्य से)

"दुष्ट!” (धकेलकर)

"यह क्या? यह क्या?” (घबराकर)

"तुम झूठे हो।” (आपे से बाहर होकर)

"मैं!” (आश्चर्य से)

"तुम नामर्द हो।” (घृणा से)

"मैं?” (रोते हुए स्वर में)

“हाँ, तुम...तुम....तुम!” (सर्पिणी की भाँति फुफकारकर)

"मेरा क्या अपराध था। तुम्हीं ने कहा था।” (अनुनय से)

"भागो यहाँ से कीड़े!” (तिरस्कार से)

"इतना तिरस्कार न करो।” (विनय से)

(पैर छूता है।)

(ठोकर मारकर)

"भागो, भागो, मुर्दार, कीड़े, भागो!” (लानत के स्वर में)

"मुझे क्षमा करो!” (कातर स्वर में)

"कोई है? इस आदमी को दूर करो।” (तेज़ और गर्व से)

(प्रस्थान)

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