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बड़ी बेगम

आचार्य चतुरसेन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :175
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9021
आईएसबीएन :9789350643334

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बड़ी बेगम...

चौथा दृश्य

(दम्पति)

"तुम पूरे छलिया हो।” (व्यंग्य से)

"प्यारी, भगवान ने भी बली की छला था और कृष्ण ने राधा की।” (प्यारी से)

"तुम मेरे भगवान और कृष्ण हो प्यारे!” (विभोर होकर)

"केवल उस छल के कारण?” (कौतूहल से)

"हाँ, वह छल न था, पुरुषत्व था।” (गम्भीरता से)

"सच? यह मैं नहीं जानता था। क्या चोरी-छल भी पुरुषत्व होता है?” (गम्भीरता से)

"हां प्यारे, संसार में कुछ चीजें माँगकर मिल जाती हैं, कुछ मोल पर कुछ छल-बल और लूट से मिलती हैं। उनका कोई मूल्य नहीं होता, न उन्हें माँगने वाले कीड़े पा सकते हैं-उन्हें वे ही वीर नर पाते हैं जो यथार्थ में पुरुष हैं।” (ओज से) "और वे अनोखी वस्तुएँ क्या हैं?” (तीखे ढंग से)

"राज्य और प्यार।” (मुग्ध भाव से)

"प्रिये, मेरा अपराध न था, मेरे मित्र का अनुरोध था।”

(हँसकर)

"अपने उस स्त्रैण मित्र को बधाई दी-वह आ रहा है, वह जनखा।”

(तीव्र व्यंग्य से)

(मित्र का प्रवेश)

"तुम छलिया हो।” (क्रोध से)

"क्या सचमुच?” (हास्य से)

"तुम कुटिल हो।” (दाँत पीसकर)

"सचमुच।” (व्यंग्य से)

"तुम लम्पट हो!” (उबलते हुए)

"नहीं यार, तुम झूठ बोलते हो।” (लापरवाही से)

"मैं तुम्हें मार डालूंगा।” (क्रोध में होकर)

"नहीं, ऐसा न करना।” (व्यंग्य से)

(युवती आगे बढ़ती है।)

"तुम चाहते क्या हो?” (कठोरता से)

"मैं इसे मार डालूंगा।” (कठोरता से)

"किसलिए?” (व्यंग्य से)

"पीछे तुम्हें मालूम हो जाएगा।” (व्यंग्य से)

"सम्भव है, पीछे तुम्हें बोलने का अवसर न मिले।”

"हाय! क्या स्त्री जाति ऐसी है?” (वेदना से)

"कैसी है?” (ताने से)

"तुम मुझे क्या समझती थीं?” (क्रोध से)

"मर्द और मनुष्य।” (क्रोध से)

"क्या मैं मर्द और मनुष्य नहीं!” (भय से)

"नहीं, उस दिन मर्दानगी देखी, आज मनुष्यत्व! चलो प्यारे, इस अभागे की यहीं बिलबिलाने दी।”

(प्रस्थान)

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